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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [५२३] मनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
उद्देशः
प्रत सूत्रांक [५२३]
दीप
व्याख्या-18|से केणढणं भंते ! एवं बुच्चइ कालतुल्लए २१, गोयमा ! एगसमयठितीए पोग्गले एग.२कालओ तले एगस-11 ५५ शतके प्रज्ञप्तिः दमयठितीए पोग्गले एगसमयठितीवइरित्तस्स पोग्गलस्स कालओणो तुल्ले एवं जाव दससमयहितीए तुल्लसंखे- HAN अभयदेवा जसमयठितीए एवं चेव एवं तुल्लअसंखेज्जसमयद्वितीएवि, से तेणद्वेणं जाव कालतुल्लए । से केणद्वेणं भंते ! ल्यता या वृत्तिः
एवं धुचइ भवतुल्लए ?, गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स भवट्ठयाए तुल्ले नेरइयवहरित्तस्स भवट्ठयाए नो तुमे सू ५२३ ॥६४८॥ |तिरिक्खजोणिए एवं चेष एवं मणुस्से एवं देवेवि, से तेण?णं जाव भवतुल्लए । से केण्डेणं भंते ! एवं बुबह
भावतुल्लए भावतुल्लए ?, गोथमा ! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालस्स पोग्गलस्स भावओ तुल्ले एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगवइरित्सस्स पोग्गलस्स भाचओ णो तुल्ले एवं जाव दसगुणकालए एवं तुल्लसंखे
जगुणकालए पोग्गले एवं तुल्लअसंखेजगुणकालएवि एवं तुल्लअर्णतगुणकालएवि, जहा कालए एवं नीलए | लोहियए हालिद्दे सुकिल्लए, एवं सुब्भिगंधे एवं दुन्भिगंधे, एवं तित्ते जाव महुरे, एवं कक्खडे जाव लुक्खे, उदइए भावे उदइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले उदइए भावे उदइयभाववइरित्तस्स भावस्स भावओ नो तुल्ले, एवं उपसमिए० खइए० खओवसमिए० पारिणामिए० संनिवाइए भावे संनिवाइयस्स भावस्स, से तेणटेणं ॥४८॥ गोषमा ! एवं बुचद भावतुल्लए २ । से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ संठाणतुल्लए २१, गोयमा ! परिमंडले || संठाणे परिमंडलस्स संठाणस्स संठाणओ तुल्ले परिभंडलसंठाणवइरित्तस्स संठाणओ नो तुल्ले एवं बटे तसे
अनुक्रम
--54-59454
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