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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [५२२] मनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत
सूत्रांक
[५२२]
| अनोत्तर-'हंता गोषमा 'इत्यादि, 'मणोदववग्गणाओ लद्धाओ'त्ति मनोद्रव्यवर्गणा लब्धास्तद्विषयावधिज्ञानलब्धिमात्रापेक्षया 'पत्ताओ'त्ति प्राप्तास्तद्रव्यपरिच्छेदतः 'अभिसमन्नागयाओ'त्ति अभिसमन्वागताः तद्गुणपर्यायपरिच्छेदतः, अयमत्र गर्भार्थः-अनुत्तरोपपातिका देवा विशिष्टावधिना मनोद्रव्यवर्गणा जानन्ति पश्यन्ति च, तासां चावयोरयो| ग्यवस्थायामदर्शनेन निर्वाणगमनं निश्चिन्वन्ति, ततश्चावयोर्भावितुल्यतालक्षणमर्थं जानन्ति पश्यन्ति चेति व्यपदिश्यत दि इति ॥ तुल्यतापक्रमादेवेदमाह
कइविहे णं भंते ! तुल्लए पण्णते?, गोयमा ! छविहे तुल्लए पपणते, तंजहा-दवतुल्लए खेत्ततुल्लए कालतुल्लए * 18. भवतुल्लए भावतुल्लए संठाणतुल्लए, से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ दबतुल्लए ?, गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमा-15
गुपोग्गलस्स दबओतुल्ले परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलवइरित्तस्स दवओणो तुल्ले, दुपएसिए खंधे दुपएसियस्स खंधस्स दखओ तुल्ले दुपएसिए खंधे दुपएसियवइरित्तस्स खंधस्स दवओणोतुल्ले एवं जाव दसपएसिए, तुल्लसंखेजपएसिए खंधे तुलसंखेजपएसियस्स खंधस्स दवओतुल्ले तुल्लसंखेजपएसिए खंधे तुल्लसंखेजपएसियवइरित्तस्स खंधस्स दवओ णो तुल्ले, एवं तुल्लअसंखेज्जपएसिएविएवं तुल्लअणंतपएसिएवि, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ दवओ तुल्लए । से केण?णं भंते ! एवं बुचइ खेत्ततुल्लए २१, गोयमा! एगपएसोगाढे पोग्गले एगपएसोगाढस्स पोग्गलस्स खेत्तओ तुल्ले एगपएसोगाढे पोग्गले एगपएसोगाढवइरित्तस्स पोग्गलस्स खेत्तओ णो तुल्ले, एवं जाव | दसपएसोगाढे, तुल्लसंखेजपएसोगाढे० तुल्लसंखेज एवं तुल्लअसंखेजपएसोगादेवि, से तेणद्वेणं जाव खेत्ततुल्लए।
दीप अनुक्रम [६१९]
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