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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [५२०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५२०] गोयमा ! ताहे चेव णं [ ग्रंथानम् ९००० 1 से सके देविंदे देवराया एगं महं नेमिपडिरूवर्ग विग्यति एग|81 जोयणसयसहस्सं आयामिक्खंभेणं तिन्नि जोयणसयसहस्साई जाव अर्द्धगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खे. घेणं, तस्स गं नेमिपडिरूवस्स उपरि पहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पत्नत्ते जाच मणीणं फासे, तस्स गं नेमिपतिद्र स्वगस्स बहुमज्झदेसभागे तत्थ णं महं एगं पासायवडेंसगं विउच्चति पंच जोयणसयाई उहूं उच्चसेणं अहाइजाई8 जोयणसयाई विक्खंभेणं अम्भुग्गयमूसियवनओ जाव पडिरूवं, तस्स पासायवर्डिंसगस्य उल्लोए पउमलयभत्तिचित्ते जाव पडिरूवे, तस्स णं पासायव.सगस्स अंतो बहुसमरमणिले भूमिभागे जाव मणीणं फासो मणिपे दिया अट्ठजोयणिया जहा वेमाणियाणं, तीसेक मणिपेढियाए उचरिं महं एगे देवसयणिज्जे वियह सयणिज्ज-18 है वन्नओ जाव पडिरूवे, तस्थ णं से सके देविंदे देवराया अहहिं अग्गमहिसीहि सपरिवाराहिं दोहि य अणि एहिं नहाणिएण य गंधवाणिएण य सद्धिं महयाहयनजाब दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरह ॥ जाहे ईसाणे देविंदे देवराया दिवाई जहा सके तहा ईसाणेवि निरवसेसं, एवं सर्णकुमारेवि, नवरं पासायवरेंसओ छ जोयणसयाई उदृ उच्चत्तेणं तिन्नि जोयणसयाई विक्खंभेणं मणिपेडिया तहेव अट्ठजोयणिया, तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं एस्थ णं महेर्ग सीहासणं विउच्चइ सपरिवार भाणियचं, तस्थ णं सर्णकुमारे देविंदे देवराया पावत्तरीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव चाहिं बावत्तरीहि आयरक्खदेवसाइस्सीहि य बहूहिं है सणंकुमारकप्पवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहि य देवीहि य सद्धिं संपरिबुडे महया जाव विहरह । एवं जहा दीप अनुक्रम [६१७] ~ 1294 ~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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