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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [५०२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५०२] नो देवाउयं पकरेन्ति, एवं जाव वेमाणिया, नवरं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोववन्नगा 8 चत्तारिवि आउयाई प०, सेसं तं चेव २॥ नेरइया गं भंते ! किं अणंतरनिग्गया परंपरनिग्गया अनंतरपर-1 परअनिग्गया ?, गोयमा! नेरइया णं अणंतरनिग्गयावि जाच अणंतरपरंपरनिग्गयावि, से केणटेणं जाव अणिटू ग्गयावि, गोयमा ! जे ण नेरइया पढमसमयनिग्गया ते णं नेरड्या अणंतरनिग्गया जे ण नेरइया अपढ-15 मसमयनिग्गया ते ण नेरइया परंपरनिग्गया जेणे नेरइया विग्गहगतिसमावन्नगातेणं नेरइया अणतरपरंपरअ-II |णिग्गया, से तेण?णं गोयमा ! जाव अणिग्गयावि, एवं जाव वेमाणिया ३॥ अर्णतरनिग्गया णं भंते 12 |नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति जाच देवाज्यं पकरेंति !, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पफरेंति जाच नो देवाउयं पकरेंति । परंपरनिग्गया णं भंते । नेरइया कि नेरइयाउयं० पुच्छा, गोयमा ! नेरइयाउयंपि पकरेंति जाव देवाउयपि पकरेंति । अणंतरपरंपरअणिग्गया णं भंते ! नेरझ्या पुच्छा, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाज्यं पकरेंति, एवं निरवसेसं जाव वेमाणिया ४॥ नेरच्या णं भंते ! किं अणंतरं खेदोववन्नगा| *परंपरखेदोववन्नग अणंतरपरंपरखेदाणुववन्नगा , गोयमा! नेरइया० एवं एएणं अभिलावणं तं चेव चत्तारि दंडगा भाणियवा । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरइ (मूत्रं ५०२)॥ चोदसमसयस्स पढमो॥१४-१॥ 'नेरइया ण'मित्यादि, 'अर्णतरोववन्नग'त्ति न विद्यते अन्तर-समयादिब्यवधान उपपन्ने-उपपाते येषां ते अनन्तरोपपन्नकाः 'परंपरोववन्नग'त्ति परम्परा-द्वित्रादिसमयता उपपन्ने-उपपाते येषां ते परम्परोपपन्नकाः, 'अणंतरपरंपरअ दीप CASTOCOCCAS अनुक्रम [५९९] ~ 1270~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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