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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [४९८] दीप अनुक्रम [५९४] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः) शतक [१३], वर्ग [–], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [४९८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाई पभू केयाघडियाहत्थकि बगयाई रुवाई बिउवित्तए १, गोयमा से जहानामए-जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे एवं जहा तइयसए पंचमुद्देसए जाव नो चेव णं संपत्तीए विउ| विंसु वा बिउविंति वा विउविस्संति वा, से जहानामए केइ पुरिसे हिरन्नपेलं गहाय गच्छेजा एवामेव अणगारेवि भावियप्पा हिरण्णपेलहत्य चिगएणं अप्पाणेणं सेसं तं चेव, एवं सुवन्नपेलं एवं रयणपेलं बहरपेलं वत्थपेलं आभरणपेलं, एवं विपलकिडुं सुंबकि चम्मकि कंबलकिडे एवं अयभारं तंबभारं तयभारं सीसगभारं हिरन्नभारं सुवन्नभारं वइरभारं, से जहानामए-वग्गुली सिया दोषि पाए उल्लंबिया २ उपादाअहोसिरा चिट्ठेजा एवामेव अणगारेवि भावियप्पा वग्गुलीकिचगएणं अप्पाणेणं उहं वेहासं, एवं जन्नोव | इयवत्तया भा० जाव विवषिस्संति वा, से जहानामए-जलोया सिया उदगंसि कार्य उद्दिहिया २ गच्छेज्या एवामेव सेसं जहा वग्गुलीए, से जहाणामए-बीयंबीयासउणे सिया दोवि पाए समतुरंगेमाणे स० गच्छेजा एवामेव अणगारे सेसं तं चैव से जहाणामए पक्खिविरालिए सिया रुक्खाओ रुक्खं देवेमाणे गच्छेजा एवामेव अणगारे सेसं तं चैव से जहानामए-जीवंजीवगसपणे सिया दोवि पाए समतुरंगेमाणे स० २ गच्छेजा एवामेव अणगारे सेसं तं चैव से जहाणामए-हंसे सिया तीराओ तीरं अभिरममाणे २ गच्छेजा एवामेव अणगारे हंसकिञ्चगएणं अप्पाणेणं तं चैव से जहानामए समुदवायसर सिया वीईओ बीई डेवेमाणे गच्छेजा एवामेव तद्देव, से जहानामए केइ पुरिसे चकं गहाय गच्छेजा एवामेव अणगारेषि भावियप्पा चक For Parts Only ~ 1258~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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