________________
आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[४७५]
दीप
अनुक्रम
[५६९]
Jain Educator
“भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः)
शतक [१३], वर्ग [-], अंतर् शतक [ - ], उद्देशक [४], मूलं [ ४७५ ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
| चैव ४, णो तहा महापवेसणतरा चेव १ नो आइन्नतरा चैव २ नो आउलतरा चैव ३ अणोयणतरा चैत्र ४, | तेसु णं नरएस नेरतिया छुट्टीए तमाए पुढवीए नेरइएहिंतो महाकम्मतरा चैव १ महाकिरियतरा चैत्र २ | महासवतरा चैव ३ महावेयणतरा चैव ४ नो तहा अप्पकम्मतरा चेव १ नो अप्पकिरियतरा चैव २ नो | अप्पास्वतरा चेव ३ नो अप्पवेदणतरा चैव ४ अपह्वियतरा चेव १ अप्पजुत्तियतरा चेव २ नो तहा महष्टियतरा चेव १ नो महजुइयतरा चेव २ । छट्टीए णं समाए पुढबीए एगे पंचूणे निरयावाससघसहस्से पण्णत्ते, ते णं नरगा आहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहिंतो नो तहा महत्तरा चैव महाविच्छिन्न० ४ महदपवेसणतरा चैव आइन्न० ४ तेसु णं नरपसु णं नेरतिया असत्तमाए पुढवीए नेरइएहिंतो अप्पकम्मतरा चैव अप्यकिरि० ४ नो तहा महाकम्मतरा चैव महाकिरिय ४ महहियतरा चैव महाजुइयतरा चैव नो तहा अप्पद्वियतरा चैव | अप्पजुइयतरा चेव । छडीए णं समाए पुढवीए नरगा पंथमाए धूमप्पभाए पु० नरएहिंतो महत्तरा चेव ४ नो तहा महष्पवेसणतरा चेव ४, तेसु णं नरएस नेरतिया पंचमाए धूमप्पभाएं पुढची एहिंतो महाकम्मतरा चेष ४ नो तहा अप्पकम्मतरा चेव ४ अध्यट्टियतरा चैव २ नो तहा महहियतरा चैव २, पंचमाए णं धूमप्पभाए | पुढवीए तिनि निरयावासस्यसहस्सा पन्नन्ता एवं जहा छट्टीए भणिया एवं सत्तवि पुढवीओ परोप्परं भण्णंति जाव रयणप्पभंति जाव नो तहा मह्रियतरा चेव अप्पजुत्तियतरा चेव (सूत्रं ४७५) ॥
'कइ णमित्यादि, इह च द्वारगाथे कचिद् दृश्येते, तद्यथा--"नेरइय १ फास २ पणिही ३ निरयंते ४ चैव लोय
For Pasta Use Only
~1214~
yor