SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [४७०-४७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४७०-४७२] दीप अनुक्रम [५६३ संखेजा कण्हपक्खिया उव०, एवं सुकपक्खियावि, एवं सन्नी एवं असन्नीवि एवं भवसिद्धीया एवं अभवसिद्धिया आभिणियोहियना सुयना ओहिना० मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगना० चक्खुदंसणी ण उवव० जहन्नेणं एको वा दो या तिनि वा उकोसे० संखे० अचक्खुदसणी उबव एवं ओहिदसणीवि आहारसन्नोघउत्तावि जाव परिग्गहसन्नोवउ० इत्थीवेषगा न उव० पुरिसवेयगावि न उच० जहन्नेणं एको वा दो। वा तिन्नि वा उकोसेणं संखेजा नपुंसगवेदगा उवव एवं कोहकसाई जाव लोभ सोइंदियउवउत्ता न| उवव० एवं जाव फासिदिओवउत्ता न उवव० जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा नोइंदिओवउत्ता उववनंति मणजोगीण उववजंति एवं वइजोगीवि जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं| संखेजा कायजोगी उववज्जति एवं सागारोवउत्ताचि एवं अणागारोवउत्तावि ॥ इमीसे णं भंते ! रयणप्प भाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएम एगसमएणं केवड्या नेरइया उववद इंति ? केवतिया काउलेस्सा उबबटुंति ? जाव केवतिया अणागारोवउत्ता उबटुंति ?, गोयमा! इमीसेणं रयण-3 हिप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं जहन्नेणं एको वादोवा तिन्नि वा उक्कोसेर्ण संखेजा नेरइया उववति, एवं जाव सन्नी, असन्नी ण उबटुंति, जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा भवसिद्धीया उबदृति एवं जाव सुयअन्नाणी विभंगनाणी ण उववहति, चक्खु|दसणी ण उवदंति, जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा अचक्खुदंसणी उबद्दति, एवं जाव -५६६] SARERatinand SITa arary.org रत्नप्रभा-आदि नरकेषु उत्पादः ~1198~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy