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आगम (०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [११], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [४१७-४१८] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[४१७-४१८]]
गाथा
आमंतेत्ता तओ पच्छा पहाए जाव सरीरे भोपणवेलाए भोयणमंडपंसि सुहासणवरगए तेणं मित्तणातिनि-18 यगसयण जाच परिजणेणं राएहिय खत्तिएहि य सर्द्धि विपुलं असणपाणखाइमसाइमं एवं जहा तामली
जाव सकारेति संमाणेति सकारत्ता संमाणेत्ता तं मित्तणाति जाव परिजणं रायाणो य खत्तिए य सिवभई हाच रायाणं आपुच्छह आपुच्छित्सा सुबहुं लोहीलोहकडाहकडुच्छ जाव भंग गहाय जे इमे गंगाकुलगा
वाणपत्था तावसा भवंति तं चेव जाव तेर्सि अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पदइए, पवइएकविय णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे जावज्जीवाए छठें तं चेव जाव अभिग्गहं अभिगिण्हइ २ पढम छट्टक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरह । तए णं से सिवे रायरिसी पढमछट्टक्खमणपार
णगंसि आयावणभूमीए पचोरुहह आयाषणभूमिए पचोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उहए तेणेवPउवागका तेणेव उवागच्छित्ता किरिणसंकाइयगं गिण्हइ गिण्हित्ता पुरच्छिम दिसं पोक्खेह पुरच्छिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवे रायरिसी अभि०२, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउसि कह पुरच्छिम विसं पसरति पुर०२ जाणि य तत्थ कंदाणि प जाब हरियाणि य ताई गेहद २ किढिणसंकाइयं भरेह कदि०२ दन्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोहं च गेण्हेइ २ जेणेव सए उडए तेणेव उवा गच्छद २ किदिणसंकाइयगं ठवेह किढि०२ वेदि वइ २ उवलेवणसंमजणं करेइ उ०२ दन्भसगन्भकलसा
दीप अनुक्रम [५०६-५०८]]
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शिवराजर्षि-कथा
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