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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१०], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [३९९-४००] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३९९-४०० पडिमा निरवसेसा भाणियवा [जाव दसाहि] जाव आराहिया भवइ । (सूत्रं३९९) भिक्खू य अन्नयरं अकिञ्चट्ठाण पडिसेवित्ता से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते कालं करेइ नस्थि तस्स आराहणा, सेणं तस्स ठाणस्स |आलोइयपडिकते कालं करेइ अस्थि तस्स आराहणा, भिक्खू य अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेबित्ता तस्स णं द एवं भवइ पच्छावि णं अहं चरमकालसमयंसि एयस्स ठाणस्स आलोएस्सामि जाव पडिवजिस्सामि, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते जाव नस्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ अस्थि तस्स अराहणा, भिक्खू य अन्नयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवइ-जइ ताव समणोवासगावि कालमासे कालं किचा अन्नयरेसु देवलोएम देवत्ताए उववत्तारो भवति किमंग पुण अहं अन्नपन्नियदेवत्तणंपि नो लभिस्सामित्तिकद्दु से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेह नत्थि तस्स आराहणा से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ अस्थि तस्स आराहणा । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ॥ (सूत्रं ४००)॥१०॥२॥ NI 'मासियण्ण'मित्यादि, मासः परिमाण यस्याः सा मासिकी तां 'भिक्षप्रतिमा' साधप्रतिज्ञाविशेष 'वोसट्टे काए'चि. व्युत्सृष्टे स्नानादिपरिकर्मवर्जनात् 'चियत्ते देहेत्ति त्यक्ते वधवन्धाधवारणात् , अथवा 'चियत्ते' संमते प्रीतिविषये धर्म-4 साधनेषु प्रधानत्वाहेहस्येति 'एवं मासिया भिक्खुपडिमा इत्यादि, अनेन च यदतिदिष्टं तदिदं-जे केइ परीसहोव& सग्गा उप्पजति, तंजहा-दिवा वा माणुसा वा तिरिक्ख जोणिया वा ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमद तितिक्खइ अहियासेई'-16 दीप अनुक्रम [४८०-४८१] BARBARS ~ 1000 ~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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