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आगम
(०४)
“समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [८], -----
-------- मूलं [८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०४], अंग सूत्र - [०४] "समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
दीप अनुक्रम [८-१०]
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लोकश्रीटीकाकृतोक्तम्---"एतानि नक्षत्राण्युभययोगीनि चन्द्रस्योत्तरेण दक्षिणेन च युज्यन्ते, कदाचिचन्द्रेण भेदम-16 प्युपयान्ती"ति, तथाचिरादीन्येकादश विमाननामानीति ॥८॥
नव भचेरगुत्तीओ प० त-नो इत्थीपसुपंडगसंसत्ताणि सिजासणाणि सेवित्ता भवइ १ नो इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ २ नों इत्थीणं गणाई सेवित्ता भवइ ३ नो इत्थीणं इंदियाणि मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निज्जाइत्ता भवइ ४ नो पणीयरसभोई ५ नो पाणभोयणस्स अइमायाए आहारइत्ता ६ नो इत्थीणं पुन्वरयाई पुष्वकीलिआई समरइत्ता भवइ, नो सदाणुवाई नो रूवाणुवाई नो गन्धाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुवाई ८ नो सायासोक्खपडिबद्धे याविमवइ ९ नव बमचेरअगुतीओ प० त०-इत्थीपसुपंडगसंसत्ताणं सिजासणाणं सेवणया जाव सायासुक्खपडियद्धे याविभवइ, नव भचेरा प० त०-सत्यपरिष्णा लोगविजओ सीओसणिज सम्मत्तं । आवंति धुत विमोहा[यणं] उवहाणसुयं महपरिण्णा ॥१॥ पासे णं अरहा पुरिसादाणीए नव रयणीओ उद्धं उच्चत्तेणं होत्था, अभीजीनक्खत्ते साइरेगे नव मुहुत्ते चन्देणं सद्धि जोगं जोएइ, बीजियाइया नव नक्खत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति तं०-अभीजि सवणो जाव भरणी, इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिमागाओ नव जोयणसए उद्धं आषाहाए उवरिले तारारूवे चार चरइ, जंबूद्दीवे णं दीवे नवजोयणिआ मच्छा पविसिसु वा ३, विजयस्स णं दारस्स एगमेगाए बाहाए नव नव भोमा ५०, वाणमंतराणं देवाणं सभाओ सुहम्माओ नव जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं प०, दंसणावरणिजस्स णं कम्मरस नव उत्तरपगडीओ प० त०-निदा पयला निहानिदा पयलापयला धीणबी चक्खुदंसणावरणे
murary ou
एते सूत्रे 'क्रिया' आदि पदार्थस्य नवविधत्वं उक्तं
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