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________________ आगम “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [४], उद्देशक [२], मूलं [३०७] (०३) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: * 4% प्रत सूत्रांक [३०७] CCCCTOCAL CCESS दीप अनुक्रम [३२७ णगपन्वते तरस ण परिसिं चत्तारि गंदाओ पुक्खरणीओ पं०, २०-विजया वेजयंती जयंती अपराजिता, तातो णं पुक्सरिणीओ एर्ग जोयणसवसहस्सं तं चेव पमाणं तहेब दधिमुद्दगपव्यता तद्देव सिद्धाययणा जाव वणसंडा, गंदीसरवरस्स क दीवस चकवालविक्वंभस्स बहुमझदेसभागे चउसु विदिसासु चत्तारि रतिकरगपञ्चता पं०, ०-उत्तरपुरच्छिमिल्ले रतिकरगपब्बते दाहिणपुरच्छिमिल्ले रइकरगपन्वए दाहिणपञ्चस्थिमिले रतिकरगपब्वते उत्तरपञ्चथिमिल्ले रतिकरगपवए, ते णं रतिकरगपब्वता दस जोयणसयाई उई उच्चत्तेणं दस गाउतसताई उब्वेहेणं सव्वस्थ समा मल्लरिसंठा संठिता दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं एकतीसं जोवणसहस्साई छच तेवीसे जोयणसते परिक्खेवण, सम्बरयणामता, अच्छा जाव पतिरूवा, तस्थ णं जे से उत्तरपुरच्छिमिल्ले रतिकरगपन्वते तस्स णं चरदिसि ईसाणस्स देविंदरस देवरनो चउण्डमग्गमहिसीणं जंबूरीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पं० सं०-णंदुत्तरा गंदा उत्तरकुरा देवकुरा, कपहाते कण्हरातीते रामाए रामरक्खियाते, तत्थ ण जे से दाहिणपुरकिछमिले रतिकरगपब्बते, तरसणं चादिसिं सफास्स देविदस्स देवरत्नो बलाहमागमहिसीणं जंबूरीवपमाणातो चत्तारि रायहाणीओ पं०, ०-समणा सोमणमा अश्चिमाली मणोरमा परमाते सिवाते सतीते अंजूए, तत्थ णं जे से दाहिणपञ्चस्थिमिल्ले रतिकरगपबसे तत्थ णं चारिसिं सफरस देविंदस्स देवरलो चउण्डमग्गमहिसीणं जंबूरीवपमाणमेत्तातो चसारि राबहाणीओ पं0, त-भूता भूतबसा गोथूभा सुदसणा, अमलाते अकराते णवमिताते रोहिणीते, तस्थ णं जे से उत्तरपपस्थिमिले रतिकरगपवते तस्थ णं -३२९] PASCHEMLCCC ~464~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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