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________________ आगम (०३) “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति स्थान [४], उद्देशक [१], मूलं [२३४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: * * प्रत सूत्रांक [२३४] * विशेषसम्बन्धः-अनन्तराध्ययने विचित्रा जीवाजीवद्रव्यपर्याया उक्ता इहापि त एवोच्यन्ते, इत्यनेन सम्बन्धेनायातस्यास्य चतुरुद्देशकस्य चतुरनुयोगद्वारस्य सूत्रानुगमे प्रथमोद्देशकादिसूत्रमेतत् चत्तारि अंतकिरियातो पं० सं०-तत्व खलु पढमा इमा अंतकिरिया-अप्पकम्मपचायाते यावि भवति, से ण मुंडे भविता अगारातो अणगारियं पब्वतिते संजभवहुले संवरबहुले समाहिबहुले लहे तीरही उचहाणवं दुक्खक्सवे तवस्सी तस्स ण णो वद्दष्पगारे तवे भवति णो तहप्पगारा वेयणा भवति तहष्पगारे पुरिसज्जाते दीहेणं परितातेणं सिझति बुजाति मुभति परिणिग्वाति सम्वदुक्खाणमंतं करेइ, जहा से भरहे राया चाउरंतचकवट्टी, पढमा अंतकिरिया १, अहावरा दोचा अंतकिरिया, महाकम्मे पञ्चाजाते यावि भवति, से गं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पम्वतिते, संजमबहुले संवरबहुले जाव उवहाणवं दुक्खक्सवे तवस्सी, तस्स णं तहपगारे तवे भवति तहपगारा वेषणा भवति, तहपगारे पुरिसजाते निरुद्रेणं परितातेणं सिज्झति जाव अंतं करेति जहा से गतसूमाले अणगारे, दोचा अंतकिरिया २, अहावरा तथा अंत किरिया, महाकम्मे पचायाते यावि भवति, सेणं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पश्यतिते, जहा दोचा, नवरं दीहेणं परितातेणं सिझति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेति, जहा से सर्णकुमारे राया चाउरतचकवट्ठी तथा अंतकिरिया ३, अहावरा चउत्था अंतकिरिया अप्पकम्मपञ्चायाते यावि भवति, से णं मुंडे भवित्ता जाव पम्वतिते दीप अनुक्रम [२४८] * SACARAL * ~362~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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