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________________ आगम (०३) “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति स्थान [३], उद्देशक [४], मूलं [२२५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२२५]] दीप अनुक्रम [२३९] इएण वा विग्गहेण उववज्जेज्जा" इत्यादि, विशेषणवत्यामप्युक्तम्-"सुत्ते चउसमयाओ नत्थि गई उ परा विणिदिहा। जुज्जइ य पंचसमया जीवस्स इमा गई लोए ॥१॥ जो तमतमविदिसाए समोहओ बंभलोगविदिसाए । उववजई *गईए सो नियमा पंचसमयाए ॥२॥ उववायाभावाओ न पंचसमयाहवा न संतावि । भणिया जह चउसमया मह लबंधे न सन्तावि ॥ ३॥" इति, अत उक्तम्-'एगिदियवज्जति, यावद्वैमानिकानामिति-वैमानिकान्तानां जीवानां त्रिसामयिक उत्कर्षेण विग्रहो भवतीति भावः । मोहवतां त्रिस्थानकमभिधायाधुना क्षीणमोहस्य तदाह खीणमोहस्स णं अरहओ सतो कम्मंसा जुगवं खिजंति, तं०-नाणावरणिज्जं दसणावरणिज्ज अंतरातियं (सू० २२६) अभितीणक्खते तितारे पं० १ एवं सवणो २ अस्सिणी ३ भरणी ४ मगसिरे ५ पूसे ६ जेट्टा ७ (सू०२२७) ध. मातो णं अरहाओ संती अरहा तिहिं सागरोबमेहिं तिचउभागपलिओवमऊणएहिं चीतिकतेहिं समुप्पन्ने (सू० २२८) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जाव तश्चाओ पुरिसजुगाओ जुर्गतकरभूमी, मही गं अरहा तिहिं पुरिससरहिं सद्धिं गुंडे भषित्ता जाव पब्वतिते, एवं पासेवि (सू० २२९) समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तिन्नि सया चउद्दसपुवीण अजिणाणं जिणसंकासाणं सबक्सरसन्निवातीणं जिण इव अवितहवागरमाणाणं उकोसिया चउद्दसपुब्बिसपया हुत्था (सू० २३०) तो तिथवरा चकवट्टी होत्या तं०-संती कुंथू अरो ३ (सू० २३१) १यिकेन वापि विग्रहेणोरपद्यते ॥ २ सूत्रे चतुःसमयाया गयाः परा गतिनं निर्दिया युज्यते च पंचसमया जीवस्यैषा गतिलोके ॥१॥ वस्तमतमोबिदिशि समवहतो महालोकवि दिशि उपयवे स नियमात पंचसमसया गया ॥२॥ उत्पादाभावान पंचसमया अथवा सस्यपि न भगिता यथा चतुःसमया महत्प्रवन्धे सखपि ॥३॥ ~358~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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