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आगम
“स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [२], उद्देशक [३], मूलं [९४]
(०३)
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३]
"स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१४]
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रिंदा पं० -लंबे चेव पभंजणे चेब, दो थणियकुमारिंदा पण्णत्ता, तं०-योसे चेव महापोसे चेव, दो पिसाइंदा पन्नत्ता---०-काले चेव महाकाले चेव, दो भूइंदा पं० १०-सुरुवे चेव पडिरूवे चेष, दो अपिंखदा पन्नत्ता, तं0पुनम चेव माणिभदेव, दो रक्खसिंदा पन्नता, तं०-भीमे चेव महाभीमे घेव, दो किन्नरिंदा पन्नत्ता, सं०-किन्नरे वेव किंपुरिसे चेव, दो किंपुरिसिंदा पं० सं०-सप्पुरिसे चेव महापुरिसे चेव, दो महोरगिंदा पं० सं०-अतिकाए घेव महाकाए चेव, दो गंधबिदा ५०, तं०-गीतरती चेव गीयजसे चेव, दो अणपनिंदा पं०, तं०-संनिहिए चेष सामण्णणे घेव, दो पणपनिंदा पं०, ०-धाए चेव विहाए चेव, दो इसिवाईदा पं०, तं०-इसिनेव इसिवालए चेक, पो भूतबाइंदा पन्नत्ता, सं०-इस्सरे व महिस्सरे चेब, दो कंदिदा पं० सं०-मुबच्छे चेव विसाले घेव, दो महाकदिंदा पन्नता, तं०-हस्से चेव हस्सरती घेव, दो कुमंडिंदा पं० सं०-सेए चेव महासेए चेष, दो पतइंदा पं० सं०-पतए व पवयवई चेव, जोइसियाणं देवाणं दो इंदा पन्नत्ता, -चंदे चेव सूरे चेव, सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु दो इंदा पं0, तं०-सके व ईसाणे घेव, एवं सर्णकुमारमार्हिदेसु कप्पेसु दो इंदा पं०, तं०-सर्णकुमारे चेव माहिदे चेब, घंभलो. गलंतएसु णं कपेसु दो इंदा पं०, ०-भे व लंतए चेक, महासुकसहस्सारेसुणं कप्पेसु दो इंदा पन्नता, सं0महामुके घेव सहस्सारे घेव, आणयपाणवारणचुतेसु णं कप्पे दो इंदा पं० सं०-पाणते चेव अभुते घेव, महासुकासहस्सारेमु णं कप्पेसु विमाणा दुवण्णा पं०, त-हालिदा चेव सुकिल्ला चेव, गेविनगाणं देवा णं दो रयणीओ
मुञ्चत्तेणं पन्नत्ता (सू० ९४ ) द्वितीयस्थाने तृतीयोदेशकः समाप्तः । २-३।
दीप
अनुक्रम [९८
स्था०१५
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