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आगम
(०३)
“स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:)
स्थान [२], उद्देशक [३], मूलं [८८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
श्रीस्थाना
सूत्रवृत्तिः
२ स्थानकाध्ययने
उद्देशः३ दिदादिस्व०
॥७२॥
दीप अनुक्रम [८८]
462525-25962
जंबूमंदर० उत्तरदाहिणेणं चुलहिमवंतसिहरीसु वासहरपव्वयेसु दो महदहा पं० २०-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवटुंति, आयामविक्खंभउज्वेहसंठाणपरिणाहणं, सं०-पउमदहे चेव पुंडरीयदहे चेव, तस्थ णं दो देवयाओ महडियाओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिवसति, ०-सिरी चेव लच्छी घेव, एवं महाहिमवंतरुप्पीमु वास
हरपन्चएसु दो महदहा पं० २०-बहुसम० जाव तं०-महापउमरहे चेव महापोंडरीयरहे चेव, देवताओ हिरिशेव बुद्विजेव, एवं निसढनीलवंतेमु तिगिछिदहे चेव केसरिबहे चेव, देवताओ धिती चेव कित्तिश्चेव, जंबूमंदर० दाहिणणं महाहिमवंताओ वासहरपव्यवाओ महापउमदहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं०-रोहियचेव हरिकतथेव, एवं निसढाओ वासहरपब्बताओ तिगिछिदहाओ दो म० --हरिश्चेव सीओअशेव, जंबूमंदर० उत्तरेणं भीलवंताओ वासहरपब्वताओ केसरिदहाभो दो महानईओ पवहंति, तं०-सीता चेव नारिकता चेब, एवं रुप्पीओ वासहरपव्यताओ महापोंबरीयदहाओ दो महानईओ पवहंति, तं०-णरकता चेव रुप्पकूला घेव, जंबूमंदरदाहिणेणं भरहे वासे दो पवायदहा पं० २०-बहुसम० त०-गप्पवातदहे चेव सिंधुष्पवायदहे चेव । एवं हिमवए वासे दो पवायदहा पं० २०
-बहु० सं०-रोहियप्पवातहहे चेव रोहियंसपवातहहे चेव, जंबूमंदरदाहिणेणं हरिवासे वासे दो पवायदहा पं० बहुसम० तं०-हरिपवातहहे चेव हरिकंतपवातहहे चेव, जंवूमंदरउत्तरदाहिणणं महाविदेहवासे दो पवायदहा पं० बहुसम० जाव सीअप्पवातहहे चेव सीतोदष्पवायदहे चेव, जंबूर्मदरस्स उत्तरेणं रम्मए वासे दो पवायदहा पं० सं०-बहु० जाब नरकंतपवायदहे व णारीकतप्पवायहहे चेव, एवं हेरन्नवते वासे दो पवायदहा पं० सं०-बहु० सुवन्नकूलपवायदहे
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