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________________ आगम (०२) “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र -२ ( मूलं + निर्युक्तिः + वृत्तिः) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [७], उद्देशक [-], मूलं [ ७८ ], निर्युक्ति: [ २०५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .....आगमसूत्र - [०२], अंग सूत्र -[ ०२ ] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः दंडे णिक्खिते?, हंता णिक्खित्ते, से णं एयारूवेणं बिहारणं विहरमाणा जाव यासाई चउपंचमाई छसमाई वा अप्पयरो वा भुजयरो वा देसं दृइज्जेत्ता अगारं वज्जा ?, हंता वएज्जा, तस्स णं सहपाणेहिं जाव सङ्घसत्तेहिं दंडे णिक्खिते ?, णो इण्डे समट्ठे से जे से जीवे जस्स परेणं सहपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं दंडे णो णक्खिते, से जे से जीवे जस्स आरेणं सबपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णिक्खिते, से जे से जीवे जस्स इयाणि सहपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णो णिक्लित्ते भवइ, परेणं असंजए आरेण संजए, इयाणिं असंजए, असंजयस्स णं सङ्घपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ, से एवमायाणह ? नियंठा !, से एवमायाणियां ॥ भगवं च णं उदाहू नियंठा खलु पुच्छिपवा - आउसंतो! नियंठा इह खलु परिक्षाइया वा परिवाइ आओ वा अन्नपरेहिंतो तित्थाययणेहिंतो आगम्म धम्मं सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा ?, हंता Education International मेजा, किं तेसिं तत्पगारेणं धम्मे आइक्खियते ?, हंता आइक्वियवे, तं चेव उवद्वावित्तए जाव कति ?, हंता कप्पंति, किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभुंजित्तए ?, हंता कप्पंति, तेणं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा तं चैव जाव अगारं बज्जा ?, हंता वएज्जा, ते णं तहष्पगारा कप्पंति संभुंजित्तए ?, णो इणट्टे समहे, से जे से जीवे जे परेणं नो कप्पंति संभुंजित्तए, से जे से जीवे आरेणं कप्पंति संभुंजित्तए, से जे से जीवे जे याणीणो कति संभुंजित्तए, परेणं अस्समणे आरेणं समणे, इयाणिं अस्समणे, अस्समणेणं सद्धिं णो कप्पंति समणाणं निग्गंथाणं संभुंजित्तए, से एवमायाणह? नियंठा !, से एवमायाणियवं ॥ सूत्रं ७८ ॥ For Park Use Only ~839~ rary org
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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