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आगम
(०२)
“सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [२], उद्देशक [-], मूलं [३५], नियुक्ति: [१६८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्तिः
प्रत
सूत्रांक
[३५]
दीप अनुक्रम [६६७]
भत्तपाणनिरुद्धगं इमं जावज्जीव वहबंधणं करेह इमं अन्नयरेणं असुभेणं कुमारेणं मारेह ॥ जावि य से अभितरिया परिसा भवइ, तंजहा-माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भगिणी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूता इ वा सुण्हा इ वा, तेसिपि य णं अन्नयरंसि अहालहुगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दंड णिवत्तेइ, सीओदगवियांसि उच्छोलित्ता भवइ जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिए परंसि लोगंसि, ते दुक्खंति सोयंति जूरंति तिप्पंति पिट्ठति परितप्पति ते दुक्खणसोयणजूरणतिप्पणपिडणपरितप्पणवहवंधणपरिकिलेसाओ अपडिविरया भवंति । एवमेव ते इस्थिकामेहिं मुछिया गिद्धा गढिया अजमोववन्ना जाव वासाइं चउपंचमाई छ।समाई वा अप्पतरो वा भुजतरो वा कालं भुंजितु भोगभोगाई पविसुइत्ता वेरायतणाई संचिणित्ता बहई पावाई कम्माई उस्सन्नाई संभारकडेण कम्मणा से जहाणामए अयगोले इचा सेलगोले इवा उदगंसि पक्खिते समाणे उदगतलमइवइत्ता अहे धरणितलपइहाणे भवइ, एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाते वजबहुले धूतबहुले पंकबहले वेरपहले अप्पत्तियबहले दंभयहुले णियडिबहुले साइबहुले अयसबहुले उरसन्नतसाणघाती कालमासे कालं किचा धरणितलमइवइत्ता अहे णरगतलपइटाणे भवइ ।। सूत्रं ३५॥
अथापरोऽन्यः प्रथमस्य स्थानसाधर्मपाक्षिकस 'विभङ्गो विभागः खरूपं व्याख्यायते-'इह खलु इत्यादि, सुगम यावन्मनुष्या एवंखभावा भवन्तीति । एते च प्रायो गृहस्था एव भवन्तीत्याह-'महेच्छा' इत्यादि, महती-राज्यविभवपरिवारादिका ||
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