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________________ आगम (०२) प्रत सूत्रांक [३१] दीप अनुक्रम [६६३] “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र -२ ( मूलं+निर्युक्तिः + वृत्तिः) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [ २ ], उद्देशक [-], मूलं [३१], निर्युक्ति: [ १६८ ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र -[०२], अंग सूत्र -[०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः Eucation Internationa उद्दवत्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहिं कस्मेहिं अन्ताणं उबक्खाहता भवइ ॥ से एगहओ उवचरयभावं पडिसंघाय तमेव उवचरियं हंता छेप्त भेत्ता पइन्ता विलुंपइसा उद्दवइन्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहिं कस्मेहिं अन्ताणं उबक्वाइसा भवइ ॥ से एगइओ पाडिपहियभावं परिसंधाय तमेव पाडिप टिचा हंता छेत्ता भेत्ता लुपहत्ता विलुपइसा उद्दवता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्वाइत्ता भवइ ॥ से एगइओ संधिछेदगभावं पडिसंधाय तमेव संधि छेत्ता भेता जाव इति से महया पावेहिं कस्मेहिं अत्ताणं वक्वात्ता भवइ ।। से एगइओ गंठिछेद्गभावं परिसंघाय तमेव गठि छेत्ता भेत्ता जाव इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उबक्वाइसा Har || से एगइओ उरग्भियभावं पडिसंधाय उरुभं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंसा जाब उवखाइसा भवइ । एसो अभिलायो सवत्थ ॥ से एगइओ सोयरियभावं पडिसंधाय महिसं वा अण्णतरं वा तसं पाणं जाय उबक्खात्ता भवइ ॥ से एगइओ वागुरियभावं पडिसंघाय मियं वा अण्णतरं वा तसं पाण हंता जाव उवक्खाइता भवइ ॥ से एगइओ सउणियभावं परिसंघाय सउणिं वा अण्णतरं वा तसं पाण हंता जाव उबक्वाइसा भवइ ॥ से एगइओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णतरं वा तसं पाण हंता जाव उवक्वाइसा भवइ । से एगइओ गोघायभावं परिसंघाय तमेव गोणं वा अण्णपरं वा तसं पाणं हंता जाब उवक्वाइसा भवइ ॥ से एगइओ गोवालभावं परिसंघाय तमेव गोवालं वा परिजविय For Parts Only ~643~ restostese
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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