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________________ आगम “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक [-], मूलं [१५], नियुक्ति: [१५७] (०२) सूत्रकृताङ्गे २श्रुतस्क-18 न्धे शीलाकीयावृत्तिः १ पौण्डरीकाध्य अहिंसापरिभावना साधोः प्रत सूत्रांक ॥२९॥ [१५] कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेचाओ दोसाओ कलहाओ अभक्खाणाओ पेसुन्नाओ परपरिवायाओ अरहरईओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ इति से महतो आयाणाओ उवसंते उवहिए पडिविरते से भिक्खू ॥ जे इमे तसथावरा पाणा भवंति ते णो सयं समारंभइ णो वण्णेहिं समारंभावेंति अन्ने समारभंतेवि न समणुजाणंति इति से महतो आयाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिविरते से भिक्खू ॥ जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा ते णो सयं परिगिण्हंति णो अन्नेणं परिगिण्हावेंति अन्नं परिगिण्हतंपि ण समणुजाणंति इति से महतो आयाणाओ उपसंते उवहिए पडिविरते से भिक्खू ॥ जं. पिय इमं संपराइयं कम्मं कजइ, णो तं सयं करेति णो अण्णाणं कारबेति अन्नपि करतं ण समणुजाणइ इति, से महतो आयाणाओ उबसंते उबट्टिए पडिविरते॥से भिक्खू जाणेज्जा असणं वा ४ अर्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूताई जीवाई सत्ताईसमारंभ समुहिस्स कीतं पामिचं अच्छिज्ज अणिसह अभिहडं आहङदेसियं तं चेतियं सिया तं (अप्पणो पुत्ताईणवाए जाव आएसाए पुढो पहेणाए सामासाए पायरासाए संणिहिसंणिचओ किजा इहएतेसिं प्राणवाणं भोयणाए) णो सयं भुजह णो अपणेणं भुंजावेति अन्नंपि भुजंतं ण समणुजाणइ इति, से महतो आयाणाओ उवसंते उवट्टिए पडिविरते ॥ तत्थ भिक्खू परकर्ड परणिहितमुग्गमुप्पायणेसणासुद्धं सत्थाईयं सत्यपरिणामियं अविहिसियं एसियं वेसियं सामुदाणियं पत्तमसणं कारणहा पमाणजुत्तं अक्खोवंजणवणलेवणभूयं संजमजायामायावत्तियं विलमिव दीप अनुक्रम [६४७] ॥२९७॥ JABERatinintamational मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.....आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: ~598~
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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