SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०२) प्रत सूत्रांक [१५] दीप अनुक्रम [६४७] Education intemational “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक [-], मूलं [१५], निर्युक्ति: [१५७] तजिनमाणस्स वा ताडिजमाणस्स वा परियाविजमाणस्स वा किलामिमाणस्स वा उद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इचेवं जाण सबै जीवा सबै भूता सबै पाणा सधे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा आउहिजमाणा वा हम्ममाणा वा तजिजमाणा वा ताडिजमाणा वा परियाविजमाणा वा किलाभिज्नमाणा वा उदविजमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारणं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति, एवं नच्चा सर्वे पाणा जाब सत्ता ण हंतवाण अज्जावेयवा ण परिघेतवा ण परतावा ण उदयवा ।। से बेमि जे य अतीता जे य पप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरिहंता भगवंता सचे ते एवमाक्र्स्वति एवं भासंति एवं पण्णवंति एवं परुवंति-सङ्के पाणा जाव सत्ता ण हंतवाण अजावयचा पण परिघेवाण परितावेयवा ण उद्दवेयवा एस धम्मे धुवे णीतिए सासए समिच लोगं खेयन्नहिं पवेदिए, एवं से भिक्खू विरते पाणातिवायातो जाव विरते परिग्गहातो णो दंतपक्वालणेणं दंते पक्खालेजा णो अंजणं णो वमणं णो धूवणे णो तं परिआविएना || से भिक्खु अकिरिए अलूसए rate अमाणे अमाए अलोहे उवसंते परिनिच्छुडे णो आसंसं पुरतो करेला इमेण मे दिद्वेण वा सुरण वा मण वा विनाएण वा इमेण वा सुचरियतवनियमवंभचेरवासेण इमेण वा जायामायाबुत्तिएणं धम्मेणं इओ पेचा देवे सिया कामभोगाण बसवत्ती सिद्धे वा अदुक्खमसुभे एत्थवि सिया एत्थवि णो सिया ॥ से भिक्खू सदेहिं अमुच्छिए रूवेहिं अमुच्छिए गंधेहिं अमुच्छिए रसेहिं अमुच्छिए फासेहिं अमुच्छिए विरए For Fans Only मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....आगमसूत्र [०२], अंग सूत्र [०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः ~ 597 ~ సరససాధన ఫల సరసన 29 30 39 సిద్ధ సర్వ స్థితి స www.jancibrary.org
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy