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________________ आगम (०१) प्रत सूत्रांक [१६२] दीप अनुक्रम [१७५] *० * * * * * %% “आचार” - अंगसूत्र - १ ( मूलं + निर्युक्तिः + वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [५] मूलं [१६२ ], निर्युक्ति: [ २४९ ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र [०१] “आचार” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः तेसु तेसु नाणन्तरेसु चरितंतरेसु संकिया कंखिया विइगिच्छासमायना भेयसमावन्ना कलुससमावन्ना, एवं खलु गोयमा ! समणावि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदंति, तत्थालंबणं 'तमेव सचं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं,' से णूणं भंते! एवं मणं धारेमाणे आणाए आराहए भवति ?, हंता गोअमा ! एवं मणं धारेमाणे आणाए आराहए भवति " किं चान्यत् । - " वीतरागा हि सर्वज्ञा, मिथ्या न ब्रुवते क्वचित्। यस्मात्तस्माद्वचस्तेषां तथ्यं भूतार्थदर्शनम् ॥ १ ॥” इत्यादि ॥ सा पुनर्विचिकित्सा प्रविवजिषोर्भवत्यागमापरिकर्म्मितमतेः, तत्राप्येतत्पूर्वोक्तं भावयितव्यमित्याह Jan Estication Intimanal सहिस्स णं समणुन्नस्स संपव्वयमाणस्स समियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ १, समियंति भन्नमाणस्स एगया असमिया होइ २, असमियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ ३, असमियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ ४, समियंति मन्नमामाणस्स समिया वा असमिया वा समिआ होइ उवेहाए ५, असमियंति मन्नमाणस्स समिया वा असमिया वा असमिया होइ उवेहाए ६, उवेहमाणो अणुवेहमाणं ब्रूया उवेहाहि समियाए, इच्चेवं तत्थ संधी झोसिओ भवइ, से उट्ठियस्स ठियस्स गई समणुपासह, इत्थवि बालभावे अप्पाणं नो उवदंसिज्जा ( सू० १६३ ) For Pantry Use Only ~449 ~# netary org
SR No.004101
Book TitleAagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages871
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size145 MB
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