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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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मनोदैहिक स्थिति है, जो दोनों के बीच क्रिया-प्रतिक्रिया रूप सह सम्बन्ध से उत्पन्न होता है।
आधुनिक मनोविज्ञान में मन के तीन स्तर
आधुनिक मनोविज्ञान में चेतना की अपेक्षा से मन के तीन स्तर माने हैं12- 1. अचेतन, 2. अवचेतन और 3. चेतन। आचार्य महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान की भाषा में अचेतन को कर्म शरीर के साथ, अवचेतन (आवरित चेतना) को तेजस- शरीर के साथ और चेतन को औदारिक या स्थूल शरीर के साथ जोड़ा है। हमारा चेतन मन ही तनाव का कारण है और चेतन मन को जाग्रत करना ही तनावमुक्ति का उपाय है। उसकी पृष्ठभूमि में ही चेतना के ये अनेक स्तर हैं।
अचेतन मन जैनदर्शन की भाषा में द्रव्य-मन है। इसमें दमित वासनाएँ और संस्कार बैठे रहते हैं और अवचेतन के माध्यम से चेतना के स्तर पर आने का प्रयास करते हैं। .
हम ज्यादा काम चेतन मन से लेते हैं। हमारी इच्छाएँ और आकांक्षाएँ इसी में उत्पन्न होते हैं। इच्छाएँ मन के स्तर पर होती हैं, जब इन इच्छाओं या आकांक्षाओं का दमन करते हैं, तो वे अचेतन मन में चली जाती है और अवचेतन मन में बार-बार उस इच्छा को उभारती रहती हैं, अर्थात् चेतना के स्तर पर लाने का प्रयास करती हैं। फ्रायड के अनुसार, अर्द्धचेतन (अवचेतन) चेतन और अचेतन-क्षेत्र के बीच एक पुलं (Bridge) का काम करता । अनेक इच्छाएँ और वासनाएँ सामाजिक आदर्शों के विपरीत होती हैं, वे हमारी चेतना के द्वारा तिरस्कृत कर अचेतन मन में डाल दी जाती हैं, लेकिन अचेतन मन में रहते हुए भी पूरी तरह निष्क्रिय नहीं होती। उनकी सक्रियता ही तनाव को जन्म देती है। वे अवचेतन एवं चेतन मन की सक्रियता को बढ़ाती हैं। फलतः वासनात्मक मन (d) और आदर्श मन (Super Ego)- दोनों के बीच एक संघर्ष होता है। दमित वासनाएँ और इच्छाएँ पुनः सक्रिय होकर चेतन मन को प्रभावित करती हैं, वहीं आदर्शात्मक-मन उन्हें नकारने की कोशिश करता है। फलतः, दोनों के बीच एक संघर्ष का जन्म होता है। आध्यात्मिक-आदर्श और दैहिक-वासनाएँ जब संघर्षरत होती हैं, तो चेतना में एक तनाव उत्पन्न होता है, जो हमारे मन और
192 आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, अरूणकुमार सिंह, आशीषकुमार सिंह, पृ. 570 193 अवचेतन मन से सम्पर्क, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ.1 (प्रस्तुति से)
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