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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति व्यक्ति पर वासनात्मक-प्रवृत्तियाँ पूर्ण रूप से हावी होती हैं 188 और वासनात्मक-व्यक्ति तनावयुक्त होता है। 2. सास्वादन-गुणस्थान - जैनधर्म के अनुसार -“यह गुणस्थान' आत्मा की पतनोन्मुख अवस्था का द्योतक है। 189 इस अवस्था में व्यक्ति में अनन्तानुबन्धीकषायवृत्ति का उदय तो होता है, किन्तु वह कुछ क्षण के बाद स्वयं को तनावों से युक्त कर लेता है। 3. मिश्र-गुणस्थान - इस गुणस्थान में व्यक्ति संशयावस्था में रहता है। "इस अवस्था में वह सत्य और असत्य के मध्य झूलता रहता है, अर्थात् वासनात्मक जीवन और कर्त्तव्यशीलता के मध्य क्या श्रेष्ठ है, इसका निर्णय नहीं कर पाता है।70 दो परस्पर विरोधी तत्त्वों के मध्य निर्णय नहीं. कर पाने या संशयावस्था की यह स्थिति नियमतः तनाव की ही स्थिति है, क्योंकि व्यक्ति इसी चिंता में रहता है कि -"मैं क्या करूं, क्या नहीं और परिणामस्वरूप, वह कुछ निर्णय नहीं कर पाता। 4. अविरतसम्यक-दृष्टि-मुणस्थान - यह गुणस्थान आध्यात्मिक विकास की वह अवस्था है, जिसमें साधक को यथार्थता का बोध या सत्य का दर्शन तो हो जाता है, किन्तु फिर भी वह वासनाओं, रागादि कषायों से युक्त होता है और जहाँ कषायादि हैं, वहाँ तनाव तो नियमतः होता ही है। इस अवस्था में संशय की स्थिति तो समाप्त हो जाती है, अर्थात् क्या अच्छा या उचित है, यह वह जानता तो है, पर फिर भी तनाव के हेतुओं से बच नहीं पाता। 5. देशविरत-सम्यक-दृष्टि-गुणस्थान - - इस गणस्थान में व्यक्ति की वासनाओं और कषायों में स्थायित्व नहीं होता।" वासनाओं और कषायों के आवेगों का प्रकटन तो होता है, किन्तु वह उन पर नियंत्रण करने की क्षमता रखता है, अर्थात् तनाव के हेतुओं से बचने का प्रयास करता है। जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन , डॉ. सागरमल जैन, पृ. 455 10% जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन , डॉ. सागरमल जैन, पृ. 457 17 जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन , डॉ. सागरमल जैन, पृ. 457 जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - डॉ. सागरमल जैन, पृ. 461 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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