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________________ 88. जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति कहा भी गया है -"क्रोध से आत्मा विकारी होता है। मान से अधम गति प्राप्त करता है। माया से सद्गति का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। लोभ से इस लोक और परलोक- दोनों में ही भय (कष्ट, दुःख) होता है। 165 "क्रोधादि कषायों को क्षय किए बिना. केवलज्ञान (तनावमुक्ति) की प्राप्ति नहीं होती। 188 इस प्रकार, आठ प्रकार की आत्माओं में शुद्ध द्रव्य आत्मा तनावमुक्त व कषाय-आत्मा को तनावयुक्त कहा जाता है। शेष छः आत्माएँ तनावयुक्त भी हो सकती हैं और तनावमुक्त भी हो सकती हैं। आत्मा का एक वर्गीकरण गुणस्थानों के आधार पर भी किया गया है। गुणस्थान निम्न चौदह माने गए हैं - 1. | मिथ्यात्व-गुणस्थान 8. | निवृत्तिबादर (कषाय), गुणस्थान 2. | सास्वादन-गुणस्थान 9. | अनिवृत्तिबादर (नोकषाय)गुणस्थान 3. | मिश्रगुणस्थान | 10. | सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान 4. अविरतसम्यग्दृष्टि | 11. उपशांतमोह-गुणस्थान - -गुणस्थान 5. | देशविरतिश्रावक-गुणस्थान 12. क्षीणमोहगुणस्थान 6. | प्रमतसंयत-गुणस्थान |13. | सयोगीकेवली-गणस्थान 7. टप्रमतसंयत-गुणस्थान 14. अयोगीकेवली-गुणस्थान 1. मिथ्यात्व-गुणस्थान - इस अवस्था में मनुष्य पूर्णतः तनावयुक्त रहता है, क्योंकि यह आत्मा की बहिर्मुखी अवस्था है। इस अवस्था में मानसिक-दृष्टि से व्यक्ति तीव्रतम अनन्तानुबन्धी-कषाय से वशीभूत रहता है 167, जिसके परिणामस्वरूप वह तनाव की तीव्रतम स्थिति में रहता है। इस अवस्था में 165 उत्तराध्ययनसूत्र - 1/54 166 आवश्यकनियुक्ति - 92 167 जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन , डॉ. सागरमल जैन, पृ. 455 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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