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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
उसकी विशेषताओं के सम्बन्ध में कोई निश्चय करता है। जैन- दार्शनिकों के अनुसार 'इदं रज्जु' में इदमता का जो बोध होता है, वह दर्शन है और 'रज्जुत्व' का जो बोध होता है, वह ज्ञान है। इसमें 'इदम्ता' अंग्रेजी भाषा में 'Thisness' की सूचक है, और रज्जु शब्द उसके विशिष्ट गुणों या आकार-प्रकार का सूचक है। इस प्रकार के ज्ञान और दर्शन की क्षमता से जो युक्त है, वह आत्मा है। आत्मा एक अमूर्त्त द्रव्य है और चित्त उसकी वृत्ति है ।
चित्त आत्मा के चैतसिक गुणों की आधारभूमि है। दूसरे शब्दों में कहें, तो चित्त आत्मा की पर्याय ( अवस्था - विशेष) है। आत्मा द्रव्य है और चित्त पर्याय है, जो ज्ञानरूप या अनुभूति - रूप होती है। आत्मा की बाह्य - जगत् में जो अभिव्यक्ति है, या जिसके माध्यम से आत्मा अपने को अभिव्यक्त करती है, वह चित्त है । चित्त चेतना की एक अवस्था है। आचार्य महाप्रज्ञजी ने चित्त-निर्माण की अवस्था को चित्त - पर्याय की अवस्था कहा है। 1159 उनके तथा कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, चित्त के तीन कार्य होते हैं - 1. अनुभव करना, 2. जानना और 3. संकल्प करना। इनमें जो तीसरा संकल्पात्मक पक्ष है, वही वस्तुतः मन है । मन को विकल्पात्मक कहा है, अतः चित्त के विकल्प ही मन का आकार ग्रहण करते हैं। वस्तुतः, स्मृति, कल्पना, मनन, ईहा, चिन्ता और विमर्श ये सब मन के कार्य हैं। ये सारे मानसिक कार्य चित्त के सहयोग से ही सम्पन्न होते हैं। 1160 जो मनन करता है, अर्थात् विकल्प करता है, वह मन है और यह मनन जिसकी सहायता से करता है, वह चित्त है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार, चित्त का अर्थ है के साथ काम करने वाली चेतना और मन का अर्थ है द्वारा काम कराने के लिए प्रयुक्त तंत्र । मन पौद्गलिक आत्मिक है। 101
स्थूल शरीर उस चित्त के है और चित्त
इस प्रकार-जैनदर्शन के अनुसार, आत्मा, चित्त और मन अपने कार्यों या बाह्य-अभिव्यक्ति की अपेक्षा से भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु अपनी सत्ता की अपेक्षा से अभिन्न हैं ।
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160 चित्त और मन, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 237
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वही, पृ. 239
जहाँ तक इन तीनों का तनाव से सम्बन्ध का प्रश्न है, मन तनाव की जन्मभूमि है, क्योंकि वह संकल्प-विकल्परूप है।
चेतना का उर्ध्वारोहण, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 51
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