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1. आत्मा, चित्त और मन एवं उनका सह सम्बन्ध
मानव अस्तित्व देह और चेतना की एक निर्मिति है। मानवीय चेतना की अभिव्यक्ति तीन माध्यमों में देखी जाती है आत्मा, चित्त और मन । यद्यपि इन तीनों में इतना तादात्म्य है कि इनमें किसी प्रकार की भेद-रेखा नहीं खींची जा सकती, फिर भी चेतना की अभिव्यक्ति एवं गतिविधियों के रूप में हम तीनों को एक-दूसरे से अलग समझ सकते हैं। सामान्यतः, अपने सत्तात्मक-स्तर पर ये तीनों एक ही हैं, किन्तु बाह्य लक्षणों और कार्यों के आधार पर इन तीनों में भेद किया जा सकता है।
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
अध्याय-3
चैत्तसिक मनोभूमि और तनाव
जैनदर्शन के अनुसार, आत्मा वह आधारभूमि है, जिसमें चेतना अभिव्यक्त होती है। आत्मा एक सत्ता है, जिसका लक्षण उपयोग अर्थात् चेतन गतिविधियाँ कहा गया है। 156 जैनदर्शन में चेतना के स्थान पर 'उपयोग' शब्द का प्रयोग अधिक हुआ है। तत्त्वार्थसूत्र में उपयोग (चेतना) के दो प्रकार बताए गए हैं - दर्शनात्मक एवं ज्ञानात्मक ।' इन्हें हम क्रमशः अनुभूत्यात्मक एवं विचारात्मक भी कह सकते हैं।
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ज्ञान निर्णयात्मक रूप है और दर्शन अनुभूति - रूप है, इसलिए जैन-आचार्यों ने दर्शन को सामान्य और ज्ञान को विशेष कहा है। यह सत्य है कि अनुभूति के बिना ज्ञान नहीं होता है, अतः ज्ञान अनुभूति की आधारभूमि पर खड़ा हुआ है, फिर भी निर्णयात्मक या विकल्पात्मक होने से विशेष है। दर्शन सत्ता के अस्तित्व का बोध कराता है, जबकि ज्ञान
156 अ) तत्त्वार्थसूत्र, - 2/8
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ब) उत्तराध्ययनसूत्र, -28/11
जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-1, पृ. 215
तत्त्वार्थसूत्र -2 / 9
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