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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
कार्य करना है, उसे छोड़कर पुराने दुखड़े रो रहे हैं। हम इसी मूर्छा में पड़े रहते हैं और जब होश आता है, तब तक बहुत देर हो जाती है। जिस समय जो कार्य करना था, वह नहीं किया, तो उसका भी भार एक साथ हम पर पड़ता है। हमारा अतीत इतना भयानक नहीं हुआ होगा, जितना भयानक उसे सोच-सोचकर हम हमारा वर्तमान बना देते हैं और कहते हैं- वर्तमान सुधार लो, तो भविष्य अपने-आप सुधर जाएगा। वर्तमान में अतीत की परछाई को लेकर चले, तो वर्तमान बिगड़ जाता है और वर्तमान बिगड़ा, तो भविष्य भी बिगड़ जाता है। हमारा जीवन आया भी और चला भी गया, न जीने का सुख मिला और न ही सुख शांति से मर सके।
अतीत की तरह ही भविष्य की चिंता भी हमारी चिता बना देती है। आज में नहीं जीकर हम आने वाले कल में जीते हैं, जो हमें पता ही नहीं है, कैसा होगा ? जो पता ही नहीं है, कैसा होगा, उसके लिए क्या चिंता करना। अपना आज अच्छा होगा, अपना आज सुधार लेंगे, तो आनेवाला कल अपने आप अच्छा होगा। पर नहीं, हम भविष्य का सोचते हैं, कल्पना करते हैं। तनावमुक्त जीवन जीने की पहली शर्त यही है कि अतीत की घटनाओं से सिर्फ शिक्षा ली जाए और भविष्य की कल्पनाओं को छोड़कर वर्तमान को जिया जाए।
जिस काल (समय) में जो कार्य करने का हो, उस काल में वही कार्य करना चाहिए।15 भविष्य की कल्पना नहीं होगी और अतीत का बोझ नहीं होगा, तो वर्तमान तनावमुक्त होगा।
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155 काले कालं समायरे। - दशवैकालिकसूत्र -5/2/4
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