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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
यही तनाव-मुक्ति है। तनाव-मुक्ति में हल्केपन का अनुभव होगा और हल्केपन का अनुभव मतलब शांति का अनुभव आनंद का अनुभव।
___ व्यक्ति या तो अपने अतीत में जीता है, या भविष्य में। अतीत हमारी स्मृति बन जाता है। अगर स्मृति अच्छी है, अतीत अच्छा है, तो हम यही सोच-सोचकर परेशान होते हैं कि काश! वे पल, वह समय फिर आ जाए, लेकिन बीता हुआ कल वापस नहीं आता, फिर चाहे वह अच्छा हो, या बुरा । व्यक्ति यही सोचता है कि वंह वक्त फिर से आए, जिसमें उसने सुख का अनुभव किया था और जब वह सुख नहीं मिलता, तो व्यक्ति विचलित हो जाता है। उस सुख को पाने की आशा में और न मिलने की निराशा में वह दुःखी हो जाता है। फिर वह अच्छी स्मृति भी चुभती है और उसे बार-बार रूलाती है। उस स्मृति से तनाव हो जाता है। कल का सोच-सोचकर हम आज में रोते हैं और आज में रोते-रोते आने वाले कल को भी रुलाते हैं। आचारांगसूत्र में अतीत के गहरे से बाहर निकालने के लिए कहा है -'अणभिक्कंतं च वयं संपेहाए; खणं जाणाहि पंडिए। 153 अर्थात्, हे आत्मविद् साधक! जो बीत गया, सो बीत गया। शेष रहे जीवन को ही लक्ष्य में स्खते हुए प्राप्त अवसर को परख। समय का मूल्य समझ। हमारा अतीत अच्छा रहा, तो आज भी उसकी स्मृति को बार-बार स्मरण कर हम तनाव में बदल देते हैं और अगर बुरा हुआ या कोई दुःखदायी घटना घटी, तो भी हम उसको सोच-सोचकर; उस घटना को बार-बार याद कर तनाव के गहरे में उतर जाते हैं। कहा भी गया है- 'जहा कडं कम्म, तहासि भारे। 154 अर्थात्, जैसा किया हुआ कर्म, वैसा ही उसका भोग। आज आर्तध्यान करेंगे, तो कल भी तनावग्रस्त ही रहेंगे। हम यह विचार नहीं करते कि जो हो गया उसे भूल जाएं, बल्कि यही विचार करते रहते हैं, दूसरों को सुनाते रहते हैं कि देखो, हमारे साथ कितनी दर्दनाक घटनाएँ घटी हैं। कभी-कभी तो हमें बहुत अच्छा लगता है कि हमारे जीवन में कुछ अलग हुआ है। हमें मजा आता है, उस तकलीफ को बार-बार छेड़ने में। हमें लगता है कि हम ऐसे ही दुःखी रहेंगे, तो लोगों की सहानुभूति मिलेगी। बड़ा आनन्द मिलता है, उसी दुःख की घटना को याद करने में, पर तब हमें यह अनुभव नहीं होता कि हम क्या कर रहें हैं, उसी तनाव के गढ्ढे में पड़े-पड़े अपना अनमोल जीवन बर्बाद कर रहे हैं। आज जो
153 आचारांगसूत्र - 1/2/1
सूत्रकृतांग - 1/5/1/26
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