________________
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
11
6. जब परिवार की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है, तब भी परिवार तनावग्रस्त होता है। 7. जब परिवार के मुख्य सदस्य या किसी अन्य सदस्य को कोई क्षति पहुंचाने की धमकी दी जाती है, तो भी पूरा परिवार तनावग्रस्त हो जाता
8. पुरुष- प्रधान समाज में स्त्री के साथ दुर्व्यवहार भी परिवार में तनाव पैदा कर देता है। 9. स्त्री के मन में भय की भावना पैदा कर देना, उसके आत्म-सम्मान को चोट पहुंचाना भी तनाव को जन्म देता है। इस बात की पुष्टि स्ट्राउस के 1979 के एक अध्ययन से होती है। 29 उन्होंने कुछ स्त्रियों के साक्षात्कार द्वारा इस तथ्य का अध्ययन किया था। जैनधर्म के अनुसार पारिवारिक अशांति के कारण - -
जैनधर्म-दर्शन के अनेकांत के सिद्धान्त के आधार पर परिवार में अनेक सदस्य होते हैं, सबकी भावनाएँ, इच्छाएं अलग-अलग होती हैं। अगर परिवार में समर्पण, सहयोग व सामंजस्य ही न हो, तो परिवार तनावग्रस्त हो जाता है। सामाजिक-विषमताएं और तनाव - _. जैनदर्शन के अनुसार, व्यक्ति और समाज दोनों एक-दूसरे पर आधारित हैं। व्यक्ति के बिना समाज की संरचना नहीं होती और सामाजिक व सांस्कृतिक-मूल्यों के अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास नहीं होता। व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के आधार पर ही जाना जाता है। वस्तुतः, जैन आगमों . की भाषा में समाज कल्पना है -"समाज कल्पना-प्रसूत. सत्य है, वास्तविक सत्य है व्यक्ति। 130 जैनदर्शन की अनेकांत-दृष्टि यह मानकर चलती है कि समाज एक सामान्य व अमूर्त तत्त्व है। समाज व्यक्ति-सापेक्ष है, क्योंकि वह व्यक्तियों से ही बनता है, किन्तु जैनदर्शन यह भी मानकर चलता है कि व्यक्ति और समाज दोनों एक-दूसरे में अन्तर्निहित हैं। जैनदर्शन-तत्त्वमीमांसा के अनुसार प्रत्येक
पारिवारिक शांति और अनेकान्त - डॉ. बच्छराज दुग्गड़, पृ. 28 Straus: The Conflict tactics scales. Journal of marriage and the family, 4, 75-88. . समस्या को देखना सीखें, आचार्य महाप्रज्ञ, (आदर्श साहित्य संघ, चूरू) संस्करण-1999, पृ.10
130
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org