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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
एक-दूसरे के प्रति प्रेम होता है, आपस में निकटस्थ सम्बन्ध होता है। यदि किसी परिवार में पारस्परिक-स्नेह, सहयोग, विश्वास आदि के तत्त्व कायम रहेंगे, तो वह परिवार एक तनावमुक्त या शांतिपूर्ण परिवार कहलाएगा। पारस्परिक सहयोग की भावना, विश्वास, शांति, नम्रता, सहनशीलता आदि गुण परिवार का संतुलन बनाए रखते हैं। परिवार के प्रत्येक व्यक्ति में इन गुणों का होना ही पारिवारिक-शांति या परिवार के तनावमुक्त होने का आधार है, जबकि इनके अभाव में परिवार तनावग्रस्त बन जाता है।
पारस्परिक सहयोग, विश्वास एवं त्याग-भावना किसी भी तनावमुक्त परिवार की प्राथमिक आवश्यकता है। एक प्रचलित कहावत है- “एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है।"
. इसी प्रकार, यदि परिवार का एक सदस्य भी दृष्ट प्रवृत्ति करता है, स्वार्थ-साधन के साथ उस समूह में रहता है, तो वह स्वयं तो तनावग्रस्त रहता ही है, साथ-ही-साथ सम्पूर्ण परिवार को भी तनावग्रस्त कर देता है। जैनदर्शन के अनुसार परिवार का संतुलन बना रहे, वह तनावमुक्त रहे, इसके लिए आवश्यकता है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य में पारस्परिक सहयोग की वृत्ति बनी रहे और परिवार का प्रत्येक सदस्य उन दुष्प्रवृत्तियों या वैयक्तिक स्वार्थ-साधन की प्रवृत्तियों से दूर रहे, जो समूह में तनाव उत्पन्न करती हैं और परिवार की शांति को भंग करती हैं, क्योंकि जैनदर्शन के अनुसार वे सभी बातें, जो पारिवारिक-हित के विरुद्ध कार्य करती हैं, अनैतिक भी होती हैं। परिवार में तनाव के कारण -
डॉ. बच्छराजजी दूगड़ ने पारिवारिक-अशांति के कारणों को दो भागों में विभाजित किया है - वैयक्तिक एवं अवैयक्तिक। 116 वैयक्तिक कारण उन्हें कहते हैं, जिसमें परिवार के सदस्यों के स्वभाव, विचार आदि में भिन्नता होने से परिवार में विरोध उत्पन्न होता है या मतभेद होता है और जिससे परिवार तनावग्रस्त होता है। जैनदर्शन के अनुसार, पारिवारिक सदस्यों की प्रवृत्तियों में विरोध के परिणामस्वरूप उनमें तनाव इतना बढ़ जाता है कि उनका एकसाथ रहना असहनीय हो जाता है।
116 पारिवारिक शांति और अनेकान्त
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