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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
पारिवारिक असंतुलन और तनाव -
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति पारस्परिक हितों के साधन के लिए एक सूत्र में बंधे हों, या एक-दूसरे के सहयोग के लिए साथ रहते हों, तब वह परिवार कहलाता है, जिसका प्रत्येक सदस्य पारस्परिक-स्नेह, सहयोग और विश्वास से जुड़ा होता है, किन्तु जब इन पारस्परिक-स्नेह, सहयोग और विश्वास के धागों में खिंचाव आता है
और परिवार टूटने या बिखरने लगता है, तब परिवार के प्रत्येक सदस्य में तनाव उत्पन्न होता है तथा परिवार की शांति भंग हो जाती है। परिवार एक ऐसा समूह है, जिसकी एक भी इकाई यदि परिवार की एकजुटता के इन सिद्धांतों के विरुद्ध जाए, या पारिवारिक व्यवस्था के नियमों को तोड़े, तो पूरा परिवार तनावग्रस्त हो जाता है। . परिवार की परिभाषा -
समाजशास्त्री इयान राबर्टसन के अनुसार 14 -"परिवार लोगों का अपेक्षाकृत स्थायी समूह है, जो वंश-परम्परा, विवाह अथवा एक-दूसरे के अंगीकरण के द्वारा संबंधित होता है और जिसके सदस्य एक साथ रहकर एक आर्थिक- इकाई का निर्माण करते हैं और अपने बच्चों की देखरेख करते हैं।
लामन्ना और रीडमान ने परिवार को परिभाषित करते हुए कहा है-"जब लैंगिक अभिव्यक्ति अथवा पारिवारिक सम्बन्धों के आधार पर, जिसमें व्यक्ति प्रायः वंश-परम्परा, विवाह अथवा अभिस्वीकरण द्वारा एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, पूरी निष्ठा से एक साथ रहते हैं तथा एक आर्थिक इकाई का निर्माण करते हैं और बच्चों को जन्म देते हैं तथा उनका पालन-पोषण करते हैं एवं घनिष्ठ रूप से जुड़कर एक समूह के रूप में अपनी पहचान पाते हैं, तब वह परिवार कहलाता है। 15
उपर्युक्त दोनों परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि परिवार एक ऐसा समूह है, जिसमें साथ रह रहे लोगों के बीच अपनत्व की भावना, एक-दूसरे पर अधिकार और विश्वास होता है।
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Magill, N.Frank (1995) International Encyclopedia of Sociology Fitzroy Dearbon publishers, USA, Vol. - 1, Page - 506. Lamanna, Mary Ann. & Agnes Riedma (1991) Marriage and families: Making choices and facing the change, 4th ed. Belmont, California Wadsworth
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