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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
होने का भी है। तनाव की जन्मस्थली तो मन है, किन्तु उसकी उत्पत्ति के मुख्य कारण इच्छा, आकांक्षा, ममत्ववृत्ति, राग-द्वेष, कषाय आदि हैं।
- आचार्य आत्मारामजी म.सा. ने आचारांगसूत्र के विवेचन में राग-द्वेष और कषाय रूपी लोक को 'भावलोक' की भी संज्ञा दी है।"57 . वैसे देखा जाए, तो जैनदर्शन में लोक के कई अर्थ माने गए हैं, जैसे - द्रव्य-लोक, क्षेत्र-लोक आदि। लोक का सामान्य अर्थ है- जो दिखाई देता है, प्रतीत होता है, अनुभूत होता है। इन विभिन्न प्रकार के लोकों में भाव-लोक को प्रमुखता दी गई है। द्रव्य-लोक का अस्तित्व. भी इसी भाव-लोक पर ही आधारित है। व्यक्तियों या वस्तुओं के प्रति आसक्ति का मूल कारण तो भाव ही है।
___ व्यक्तियों या वस्तुओं के प्रति आसक्ति या राग-भाव उनकी प्राप्ति की इच्छा या आकांक्षा उत्पन्न करते हैं, ये इच्छाएँ या आकांक्षाएँ ही तनाव का कारण होती हैं।
दैनिक-जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तएँ द्रव्य कहलाती हैं। इन भौतिक वस्तुओं पर आसक्ति होने पर उनकी प्राप्ति की इच्छा
और आकांक्षा होती है या फिर उनके नष्ट होने पर या उनका वियोग होने पर अथवा उन्हें प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होने पर क्रोध या द्वेष होता है, फलतः तनाव उत्पन्न होता है। इससे व्यक्ति क्षोभित एवं चिंतित हो उठता है। इच्छा, आकांक्षा, अपेक्षा, क्षोभ, चिंता, व्याकुलता आदि सभी तनाव के ही उपनाम हैं। मनोभावों के कारण ही पर-द्रव्यों पर राग-द्वेष होता है और इन्हीं के कारण ही क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, द्वेष आदि सभी दुष्प्रवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जो व्यक्ति को तनावग्रस्त बना देती
जैन सत्रों में प्रथम सत्र आचारांग में इसी राग-द्वेष तथा तद्जन्य कषाय के कारणों, स्वरूप आदि को समझाया गया है, जो तनाव का मुख्य कारण हैं। इन राग-द्वेष एवं तद्जन्य कषायों के स्वरूप की चर्चा हम आगे करेंगे। जैसा कि हम जानते हैं कि राग और द्वेष तनाव की उत्पत्ति का मूल कारण हैं। वस्तुतः, राग-द्वेष के कारण कषायों का जन्म होता है और कषायों के कारण तनाव उत्पन्न होता है। राग-द्वेष एवं कषाय का सह सम्बन्ध बताते हुए उमास्वाति ने प्रशमरति
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आचांरागसूत्र, पृ. 110
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