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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
जब वह अध्यात्म-दृष्टि से सम्पन्न हो। प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि अध्यात्म- पद पर चलने का साधन देह ही तो है, फिर क्या देह को सुरक्षित रखने का प्रयास छोड़ दें? इसका उत्तर हमें विनोबा भावे की पुस्तक आत्मज्ञान और विज्ञान में मिलता है। उनके विचार थे कि आज विज्ञान के कारण हम लोगों के हाथों में अत्यधिक शक्ति आ गयी है, लेकिन उसका उपयोग कैसे किया जाये, यह तो आत्मज्ञान (अध्यात्म) ही बतलाएगा। घोड़े को वश में रखें और उस पर लगाम चढ़ाएं, तभी आप उस पर सवार होकर इच्छित स्थान पर पहुंच सकते हैं। विज्ञान घोड़ा है और आत्मज्ञान उसकी लगाम। 45 कहने का तात्पर्य यही है कि आध्यात्मिकता के भवन को यदि ऊँचा उठाना है, जीवन को सुख और शांति से जीना है तो अध्यात्म को ही आधार बनाना होगा। आध्यात्मिक-दृष्टि से जीने वाले व्यक्ति का जीवन तनाव से मुक्त रहेगा। व्यक्ति में मैत्री, करुणा आदि की भावनाओं का विकास होगा। प्रिय-अप्रिय में उसका समभाव होगा। वह देह व आत्मा की भिन्नता को समझेगा। अगर देह में कोई पीड़ा उत्पन्न होगी, तो तनाव उत्पन्न होगा, किन्तु आध्यात्मिक व्यक्ति उस पीड़ा को नश्वर देह की विकृति समझकर तनावमुक्त रहेगा। अपने समान ही दूसरे प्राणी को समझेगा। इस बात की सिद्धि उपाध्याय यशोविजयजी के ज्ञानसार से होती है। वे अध्यात्म का अर्थ बताते हुए लिखते हैं कि सद्धर्म के आचरण से बलवान बना हुआ तथा मैत्री, करुणा, प्रमोद और माध्यस्थ-भावना से मुक्त निर्मल 'चित्त ही अध्यात्म. है। चित्त की निर्मलता तनाव को हटा देती है। तनाव की स्थिति भौतिक-दुःख एवं तनावमुक्ति आध्यात्मिक-सुख
व्यक्ति अगर भौतिक सख-सविधा के पीछे भागेगा तो तनावपूर्ण जीवन जीएगा, क्योंकि उन भौतिक सुखों की लालसा में वह तनावग्रस्त ही रहेगा, किन्तु देह व मन को आत्मा से भिन्न मानकर आध्यात्मिक-सुख . प्राप्त करने का प्रयत्न करेगा, तो तनावमुक्ति का अनुभव करेगा। भौतिक-सुख तृप्ति नहीं देते हैं, एक इच्छा पूरी होने पर कुछ क्षण के लिए तृप्ति मिलती है, किन्तु फिर मन अतृप्त और अशान्त हो जाता है। अतृप्त मन दुःखी बनाता है, तनाव उत्पन्न करता है। यह मन लालची है, कितना भी मिले, उसे वह कम ही लगता है उससे तृप्ति नहीं होती है। यह मन एक ऐसा गहन गहवर है जिसे कितना ही भरने
आत्मज्ञान और विज्ञान, विनोबा भावे, पृ. 95-96
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