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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
तनाव का आध्यात्मिक अर्थ
'तनाव' शब्द का अर्थ हम पूर्व में समझ चुके हैं। तनाव शब्द का आध्यात्मिक - अर्थ जानने से पूर्व यह जरूरी है कि हम आध्यात्मिक - शब्द का अर्थ भी समझ लें। डॉ. सागरमल जैन के अभिनंदन ग्रंथ में उनका एक लेख है- अध्यात्म और विज्ञान । उसमें कहा गया है कि अध्यात्म शब्द अधि + आत्म से बना है । 'अधि' उपसर्ग विशिष्टता का सूचक है, अर्थात् जो आत्मा की विशिष्टता दे, वही अध्यात्म है।
'आत्मानम् अधिकृत्य यद्वर्तते तद् अध्यात्मम्'' आत्मा को लक्ष्य करके जो भी क्रिया की जाती है, वह अध्यात्म है। आनंदघनजी ने भी आत्मस्वरूप को साधने की क्रिया को अध्यात्म कहा है। 41 साध्वी प्रीतिदर्शनाश्रीजी ने भी अपने शोध आलेख में लिखा है शरीर, वाणी और मन की भिन्नता होने पर भी उनमें चेतना - गुण की जो सदृशता है, वही अध्यात्म है। 12
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि जब व्यक्ति शरीर एवं मन से आत्मा के ज्ञाता - द्रष्टा स्वरूप की भिन्नता को स्वीकार करता है, तब वह अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है।
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अध्यात्म का सम्बन्ध आत्मा से है और तनाव का सम्बन्ध शरीर व मन से। जब तक देहासक्ति है, तनाव बना रहेगा और जब व्यक्ति देह से ऊपर उठकर देहातीत बन जाता है, तो वह अध्यात्म की ओर अग्रसर हो जाता है तथा तनावमुक्त हो जाता है।
39 डॉ. सागरमलजी जैन अभिनंदन ग्रंथ अध्यात्म और विज्ञान, पृ. 2
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अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-1, पृ. 257
41 निजस्वरूप जे किरिया साधे तेह अध्यात्म कहीये रे,
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अध्यात्मसार, (शोधग्रंथ), पृ. 28
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जब तक देह के प्रति ममत्व-भाव है, व्यक्ति आत्मा का अनुभव नहीं कर सकता, क्योंकि प्रत्येक प्राणी शारीरिक- सुरक्षा, सुख एवं सुविधा को पाने के प्रयास में लगा रहता है। आज के युग में मानव के पास हर प्रकार की सुख-सुविधा है- धन, वैभव, भोग-विलास के साधन, सुरक्षा के लिए अनेक तेजस्वी शस्त्र आदि, लेकिन फिर भी वास्तविकता यह है कि प्रत्येक मानव तनाव एवं अशांति से ग्रस्त है। मानव का प्रयास कितना ही शांति प्राप्त करने के लिए क्यों न हो, वह तनावग्रस्त ही अधिक होता है। विज्ञान ने आज कई मशीनों और यंत्रों का विकास .
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श्रेयांसनाथ का स्तवन
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