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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
कभी-कभी व्यक्ति हर बात या घटना में नकारात्मक विचार ही
करता है।
कोई अच्छा भी कर रहा हो, किन्तु उसे गलत ही लगता है । 3. तनाव - प्रबंधन का मनोवैज्ञानिक अर्थ
चाहे समकालीन मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में तनाव हमारी मनोदैहिक - अवस्था का प्रतीक हो, परन्तु जब हम तनाव के कारणों का विश्लेषण करते हैं, तो यह पाते हैं कि तनाव का जन्म हमारी मनोदशा या मनोवृत्ति से ही होता है। वैज्ञानिक प्रयोगों की दृष्टि से चाहे तनाव को दैहिक - संवेदना के रूप में देखा जाता हो, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से तनाव एक मानसिक - उत्पीड़न की अवस्था ही है। तनाव की दशा में हमारी चित्तवृत्ति अशांत होती है और चित्त की यह संवेगात्मक विसंगति ही तनाव कही जा सकती है।
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मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो प्राणी के व्यवहार तथा मानसिकप्रक्रियाओं का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक - द्वन्द्व एवं दैहिक - प्रक्रियाओं तथा परिवेश के साथ उनके सम्बन्धों का अध्ययन करता है। 36 इन दैहिक व मानसिक प्रक्रियाओं के विचलन को ही तनाव कहा जाता है। वस्तुतः, कुछ मनोवैज्ञानिकों ने दैहिक-स्तर पर होने वाले असामान्य परिवर्तन को ही तनाव कहा है । 37
मनोवैज्ञानिक शारीरिक रसायनों में होने वाले असामान्य परिवर्तनों को ही तनाव कहते हैं । मनोवैज्ञानिकों ने चित्त या मन को एक काल्पनिक सत्ता ही माना है, किन्तु मानसिक - अनुभूतियों के स्तर पर हम तनाव को चित्त या मन की अवस्था - विशेष से पृथक् नहीं कर सकते हैं। आध्यात्मिक - दृष्टि से चित्त- विचलन ही तनाव है। अतः, तनाव की व्याख्या और उसके निराकरण के उपायों की चर्चा मात्र दैहिक - आधार पर न करके मानस - मनोविज्ञान के आधार पर करनी होगी। चाहे आज मनोविज्ञान प्राणी-व्यवहार का विज्ञान हो, किन्तु वस्तुतः वह मानव मन का ही विज्ञान है। प्रायोगिक स्तर पर हम मनोवैज्ञानिक -स्थितियों को भी दैहिक - आधार पर ही पकड़ पाते हैं, किन्तु यह सत्य है कि चैतसिक - अनुभूति के स्तर पर हम चित्त या मन की सत्ता को नकार
36 मनोविज्ञान की पद्धति एवं सिद्धांत, डॉ. जे. डी. शर्मा, पृ. 16
37 मनोविज्ञान की पद्धति एवं सिद्धांत, डॉ. जे. डी. शर्मा, पृ. 16
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