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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
तनाव के दैहिक-प्रभाव - • व्यक्ति को भूख नहीं लगती। भूख लग भी रही हो, तो भी खाने का मन नहीं करता। वह खाता भी है, तो अनमने मन से, जो स्वास्थ्य के लिए घातक होता है। • . व्यक्ति अपने ही शरीर को नुकसान पहुचाता है। उदाहरण के लिए कोई प्रेम में असफल हो जाता है, तो चाकू से अपने शरीर पर उस व्यक्ति का नाम लिखने लगता है, जिससे उसे प्रेम था। • तनावयुक्त व्यक्ति को नींद नहीं आती है। • अनेक व्यक्ति के शरीर में अनेक बीमारियाँ घर कर लेती हैं जैसे रक्तचाप, मधुमेह आदि। हृदयाघात होने का भी एक मुख्य कारण तनाव . ही है।
• तनावग्रस्त होने पर व्यक्ति अपना क्रोध दूसरों से मार-पीट कर निकालता है। • तनाव जब अधिक बढ़ जाता है, तो व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो देता है, परिणामस्वरूप वह पागल तक हो जाता है। • जिसे अपना ही होश नहीं है, वह अच्छा-बुरा क्या सोचेगा। ऐसा व्यक्ति दूसरों की जान भी ले लेता है या फिर आत्महत्या तक कर लेता
है।
तनाव के भावनात्मक प्रभाव -
• मेरे साथ बुरा हुआ है, तो मैं भी सबका बुरा ही करूँगा। व्यक्ति के मन में ऐसी भावना उत्पन्न हो जाती है। • कभी-कभी नकारात्मक सोच भी बन जाती है। उदाहरणार्थ - अपना कोई प्रिय व्यक्ति किसी दुर्घटना में मर जाता है, तो उसके दुःख में दुःखित व्यक्ति यह सोचने लगता है कि ऐसा किसी दूसरे के साथ नहीं होना चाहिए। • व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी आ जाती है।
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