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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
परिग्रह-वृत्ति से बचने के लिए शास्त्रों के आधार पर हमने कुछ सूत्र भी प्रस्तुत किए हैं।
साथ ही, इसमें अहिंसा के सिद्धांत द्वारा भी तनावमुक्ति किस प्रकार सम्भव है, यह बताया गया है। वर्तमान युग में हर समस्या का मुख्य कारण हिंसा और भय में खोजा जा सकता हैं। हिंसा एक क्रूर वृत्ति है, जहाँ विवेक, विनम्रता, करुणा, सरलता, प्रेम आदि के भाव समाप्त हो जाते हैं और इनके स्थान पर व्यक्ति में क्रूरता, कपट कलह, क्रोध, घृणा आदि वृत्तियाँ अपनी जगह बना लेती हैं। ये वृत्तियाँ व्यक्ति को तनावग्रस्त कर देती हैं, अतः हिंसा से बचने के लिए व्यक्ति को अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाना होगा। प्रस्तुत विषय में हिंसा के स्वरूप एवं उसके दुःखद परिणामों को समझाते हुए तनाव से बचने हेतु हिंसा से बचने का निर्देश दिया गया है। दूसरे, हिंसा भय को जन्म देती है . और भय एक प्रकार का तनाव है, अतः तनावमुक्ति या भयमुक्ति के लिए अभय की साधना आवश्यक है। यदि हम भयमुक्त रहना चाहते हैं, तो दूसरों को भी भयमुक्त करना होगा और अहिंसा इसी भयमुक्ति का संदेश देती है।
इसी प्रकार, जैनदर्शन का अनेकांत का सिद्धान्त हर प्रकार के झगड़े या द्वन्द्व को मिटाकर शांति स्थापित कर सकता है। आज विश्व के हर क्षेत्र में, चाहे परिवार हो, समाज हो, राजनीति हो, अर्थव्यवस्था या धर्म का क्षेत्र हो, या प्रबंधन-शास्त्र का क्षेत्र हो, अनेकांतवाद के बिना किसी भी क्षेत्र में शांति संभव नहीं है। अनेकांत संघर्ष को समाप्त करता है, अतः तनावमुक्ति के लिए अनेकांतदृष्टि को अपनाना आवश्यक है। इन विविध क्षेत्रों में अनेकांतदृष्टि किस प्रकार व्यक्ति को तनावमुक्त करती है, इसका विस्तार से विवेचन इस षष्ठ अध्याय में किया गया है।
इन्द्रियविजय और तनावमुक्ति - व्यक्ति के तनावग्रस्त होने का मुख्य कारण व्यक्ति की इन्द्रियों के विषयों के प्रति आसक्ति है। इन्द्रियों का विषयों से सम्पर्क होने पर उनमें से कुछ अनुकूल और कुछ प्रतिकूल प्रतीत होते हैं। अमुकूल के प्रति राग और प्रतिकूल के प्रति द्वेष का जन्म होता है और ये राग-द्वेष तनाव-उत्पत्ति के मूलभूत हेतु हैं, यह भी हम पूर्व में स्पष्ट कर चुके हैं, अतः तनावमुक्ति के लिए इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। इन्द्रियों पर विजय कैसे प्राप्त की जा सकती है, इसकी व्याख्या भी कुछ सूत्रों के माध्यम से इसी अध्याय में की गई है।
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