________________
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
कषाय-विजय और तनावमुक्ति
कषाय का क्षेत्र इतना व्यापक है कि व्यक्ति चाहकर भी कषायों से बच नहीं पाता है और परिणामस्वरूप तनावग्रस्त हो जाता है। क्रोध, मान, माया और लोभ- इन चारों में से कोई एक भी कषाय व्यक्ति के जीवन में आ जाता है, तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। कषाय-भाव से युक्त व्यवहार करने वाला व्यक्ति न तो स्वयं प्रसन्न रहता है और न ही दूसरों को प्रसन्न रख सकता है। कषायरूपी अग्नि स्वयं को भी जलाती है और दूसरों को भी जलाती है, अतः इस शोध-ग्रन्थ के मूल लक्ष्य तनावमुक्ति को ध्यान में रखते हुए कषायों पर विजय प्राप्त करने के लिए अनेक आगमिक - सूत्रों का निर्देश भी प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के इस छठे अध्याय में किया गया है। जैनधर्म भावना - प्रधान धर्म है। व्यक्ति के भाव ही उसे ऊपर उठाते हैं और भाव ही तनावग्रस्तता का कारण बनते हैं। जैसे हमारे भाव बनते हैं, वैसी ही हमारी लेश्या बनती है और जैसी हमारी लेश्या होती है, वैसा ही हमारा व्यवहार बनता है, जैसा हमारा व्यवहार होता वैसा ही हमारा व्यक्तित्व बनता है। इन लेश्याओं के स्वरूप का विवेचन तो चतुर्थ अध्याय में किया गया था, प्रस्तुत अध्याय में लेश्या - परिवर्तन से व्यक्ति के भावों में कैसे परिवर्तन किया जा सकता है व उसे तनावमुक्त बनाया जा सकता है, इसका विस्तार से विवेचन किया गया है।
लेश्या - परिवर्तन और तनावमुक्ति
327
तनावमुक्ति के लिए ध्यान - विधि को सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता है। ध्यान-विधियों के अन्तर्गत विपश्यना या प्रेक्षाध्यान की विधि सबसे अधिक प्रचलित है । प्रेक्षाध्यान विधि के द्वारा मन की चंचलता को समाप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। ध्यान की यह विधि पाँचवें अध्याय में दी गई है। यहाँ ध्यान के महत्त्व को समझाते हुए तनावमुक्ति के लिए ध्यान करने का निर्देश दिया गया है।
व्यक्ति की श्रद्धा सबसे अधिक धर्म पर होती है। अगर ध्यान के सही स्वरूप को समझ लिया जाए, तो व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि स्वस्वभाव में रहना ही धर्म है। धर्म ही तनावमुक्ति में मार्गदर्शक है
1
इस प्रकार, मैंने उपर्युक्त सातों अध्यायों में जैन- दृष्टिकोण के आधार पर तनाव का स्वरूप, उसकी आधारभूमि, उसके कारण, जैनदर्शन की विविध अवधारणाओं से उनका सहसम्बन्ध, उनके प्रबन्धन की तकनीक और उनके निराकरण के उपायों की चर्चा की है और यथास्थान आधुनिक मनोविज्ञान, बौद्ध-धर्मदर्शन और प्रबन्धनशास्त्र की
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org