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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
सामग्री में कोई नुकसान हो जाता है तो वह दुःख करता है, चिंता करता है, यह तनाव नकारात्मक तनाव कहा जाएगा।
. सकारात्मक तनाव में तनाव होते हुए भी आत्मशांति पूर्णतः भंग नहीं होती, किन्तु नकारात्मक तनाव में विलाप, क्षोभ आदि के साथ आत्मशांति भी भंग हो जाती है। चिंता दोनों में ही है, किन्तु एक चिंता में नींद खराब नहीं होती है और दूसरी में नींद खराब होती है। पुनः, दूसरे तनाव में नींद नहीं आने से भी तनाव तीव्र होता है। सकारात्मक तनाव में चिन्ता कम होती है, जबकि नकारात्मक तनाव में चिन्ता अधिक होती है। एक अन्य दृष्टि से, सकारात्मक तनाव उत्कर्ष का हेतु होता है, जबकि नकारात्मक तनाव विनाश का हेतु होता है। अन्य अपेक्षा से तनाव को तीन वर्गों में बाटा गया है- .. .. (i) विफलता या पराजय (ii) विरोध (ii) दबाव।
वस्तुतः, ये तीनों ही तनाव के कारण हैं। इन तीनों से तनाव उत्पन्न होता है और इन तीनों स्थितियों में तनावयुक्त व्यक्ति की मानसिक-स्थिति सामान्य नहीं होती है, शायद इसीलिए मनोवैज्ञानिकों ने इन्हें भी तनाव कहा है।
(i) विफलताजन्य तनाव - प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का एक लक्ष्य होता है और उसी को प्राप्त करने के लिए उसके प्रयास होते हैं, किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि उसके सभी प्रयास अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो। जिस व्यक्ति को विफलता मिलती है, वह निराश हो जाता है, दुःखी होता है, अर्थात् तनावयुक्त होता है। (ii) विरोधजन्य तनाव - आज व्यक्ति या समाज में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में तनाव का एक महत्वपूर्ण कारण पारस्परिक विरोध है। विरोध के कारण उत्पन्न तनाव विरोधजन्य तनाव है। (iii) दबावजन्य तनाव - जब व्यक्ति को किसी कार्य के करने के लिए, या क्षमता से अधिक कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता है तो यह बाध्यता या दबाव भी तनाव है। यही दबाव बढ़ने पर तनाव का रूप ले लेता है।
33 Abnormal Psychology and Modern life Page - 145
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