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________________ 28 तनाव की मनोदैहिक परिभाषाएं : तनाव एक मानसिक पीड़ा है, जिसके कारण शरीर के रसायनों में नकारात्मक परिवर्तन होता है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि शरीर में होने वाले रसायन - परिवर्तन से तनाव उत्पन्न होता है। तनाव शरीर की उत्तेजना है, जिससे व्यक्ति कमजोर या बीमार होता है, किन्तु अगर तनाव का मात्र शरीर से ही सम्बन्ध होता, तो व्यक्ति का तनावमुक्त होना भी तो शरीर - विशेषज्ञों के हाथ में होता, लेकिन सत्य यह है कि तनाव एक मनोदैहिक - अवस्था है। जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति यह सच है कि तनाव से व्यक्ति के शारीरिक - रसायनों में परिवर्तन होता है, किन्तु तनाव एक ऐसी मानसिक - संवदेना है, जो हमारे दैहिक - तंत्र को प्रभावित करती है। उत्तराध्ययनसूत्र में दैहिक - दुःखों के अतिरिक्त मानसिक-दुःखों का भी उल्लेख मिलता है। 2 भावनात्मक क्रियाओं का असर व्यक्ति के मस्तिष्क पर पड़ता है और उसी से ही कई बीमारियां शरीर में जन्म लेती हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि मानसिक तनाव से ही शारीरिक तनाव उत्पन्न होता है। हमारा जीवन आसान एवं तनावमुक्त होता, अगर हमारी हर इच्छा या आकांक्षा अपने आप पूरी हो जाती, किन्तु उन्हें पूरा करने में हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जब हमारी इच्छाओं की पूर्ति में कठिनाई आती है या हम उन्हें पूरा करने में सफल नहीं हो पाते हैं, तो तनाव उत्पन्न होता है। कुछ पाश्चात्य - मनोवैज्ञानिकों ने तो कहा है कि ऐसी कोई भी घटना, जो व्यक्ति में भय या चिन्ता उत्पन्न करे, वह तनाव है। डॉ. सुरेन्द्र वर्मा ने भी भय को तनाव का समानार्थी कहा है। अ यहाँ उन मनोवैज्ञानिकों की बात अधिक उचित लगती है, जो तनाव को एक मनोदैहिक - अवस्था मानते हैं । भय से तनाव उत्पन्न होता. है, अर्थात् भय तनाव का कारण है। वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति का जीवन कई घटनाओं (परिस्थितियों) से भरा हुआ है, जैसे- परीक्षा में फेल हो 29 उत्तराध्ययन सूत्र - 19/45 30 Stress can come from any situation or throught that make you feel frustrated, angry, nervous or even anxious. By kirsti A Dyer MD. MS. FT to About.com - समता सौरभ, जुलाई - सितम्बर 1996, पृ. 43 31 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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