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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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मायूसी या दुःख होता है, उसे परिस्थितिजन्य विषाद कहा जाता है (जो तनाव की ही एक अवस्था है।) 7. डॉ. सुरेन्द्र वर्मा ने दुःख, क्लेश, भय इत्यादि अनेक भावों को ही तनाव कहा है। उनके अनुसार, दुःख क्लेश, भय इत्यादि के भाव बहुत कुछ तनाव के समानार्थक हैं। तनाव अनुभूति के स्तर पर एक व्यग्रता, उद्वेग, आतुरता या आकुलता है। जब हम इस उद्वेग को पहचान जाते हैं, तो यह 'परिताप' दुःख, क्लेश और भय के नाम से जाना जाता है।" 8. कर्ट लेविन कहते हैं - "तनाव व्यक्ति या व्यक्तित्व की एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें एक या एक से अधिक आन्तरिक -वैयक्तिक तंत्रो (inner- Personnal - system) के बलों के बीच में असंतुलन . स्थापित हो जाता है।" 9. विषाद को तनाव का पर्यायवाची कहा जाता है। सेलिगमेन ने अपने आरंभिक शोधों में यह दिखलाया था कि आरोपित निःसहाय दशा तथा प्रतिक्रियात्मक-विषाद- इन दोनों में काफी समानता है, क्योंकि उनकी उत्पत्ति एवं लक्ष्य लगभग समान होते हैं। इसे प्रतिक्रियात्मक विषाद इसलिए कहा जाता है कि यह विषाद सांवेगिक क्षुब्धता उत्पन्न करने वाली घटनाओं के प्रति एक तरह की प्रतिक्रिया-रूप होता है। ऐसी घटनाओं में किसी प्रियजन की मृत्यु, नौकरी छूट जाना, व्यवसाय में घाटा होना, परीक्षा में असफल होना आदि प्रमुख हैं।"
तनाव की. उपर्युक्त सभी परिभाषाओं में व्यक्ति का दैहिक पक्ष प्रमुख रहा हुआ है और इन सभी मनोवैज्ञानिकों ने तनाव को एक दैहिक या आंगिक परिवर्तन के रूप में ही देखा है।
25 Feeling unhappy or sad in response to disappointment loss, frustration or
a medical condition is normal. This is situational depression, which is a normal reaction to event around us. By
Http: //www.helpguide.org/mental/despression/signs typer. 20 समता सौरभ - जुलाई - सितम्बर 1996, पृ.39 - व्यक्तित्व का मनोविज्ञान, अरूण व आषीष कुमार सिंह, पृ. 339
व्यक्तित्व का मनोविज्ञान, अरूण व आशीष सिंह, पृ. 402
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