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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
अपने जीवन में या स्वभाव में सरलता का विकास करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। लोम-विजय के उपाय - 1. शास्त्रों के वचनों पर श्रद्धा रखना चाहिए। जैन आगम उत्तराध्ययनसूत्र में पूछा गया है -“लोभ के विजय से. जीव को कौन-सा लाभ होता है ? प्रभु ने उत्तर दिया - लोभ-विजय से संतोष-गुण उत्पन्न होता है। लोभ-विजय से असातावेदनीयकर्म का बंध नहीं होता . तथा पूर्वबद्ध कर्म की निर्जरा होती है। 2. लोभ पर विजय प्राप्त करने के लिए इच्छाओं व आंकाक्षाओं को अल्प करने का प्रयास करना चाहिए। 3. लोभ की पूर्ति एक बार होने पर वह बढ़ता ही जाता है। किसी भी चीज की चाह अति दुष्कर व दुःखदायी होती है, अतः लोभ की वृत्ति को बढ़ने न दें। 4. जितना हमारे पास है, उतने में संतुष्ट होने की भावना होना चाहिए। 5. लोभ-विजय के लिए बारह भावनाओं का चिन्तन करें।97 6. योगशास्त्र में लोभ विजय का सूत्र बताते हुए कहा गया है -"लोभरूपी समुद्र को पार करना अत्यन्त कठिन है। उसके बढ़ते हुए ज्वार को रोकना दुष्कर है, अतः बुद्धिमान् पुरुष को चाहिए कि संतोषरूपी बाँध बांधकर उसे आगे बढ़ने से रोक दे।998 7. लोभी व्यक्ति जब लोभ कषाय से युक्त होता है, तो केवल लोभ ही नहीं, बल्कि मान, माया और क्रोध-कषाय भी उस पर हावी हो जाते हैं। चारों कषायों से युक्त व्यक्ति के दुष्परिणामों का चिन्तन कर लोभ पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न करें।
596 लोभविजयेणं भंते। जीवे किं जणयइ।
लोभविजएणं संतोसिभावं जणयइ, लोभेवेयणिज्ज कम्म ने बन्धइ पुव्वबद्धं च कम्मं निज्जरेइ ..........। -उत्तराध्ययनसूत्र -29/70 बारह भावना लोभसागर मुवेलमतिवेल महामतिः।। संतोष सेतुबन्धेन प्रसरन्तं निवारयेत।। - योगशास्त्र-4/22
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