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________________ 294 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति मान-विजय के उपाय - 1. दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि मान विनय का नाश करने वाला है, अतः मान पर विजय मृदुता अर्थात् विनम्रता से प्राप्त की जा सकती है।990 2. शरीर की स्वस्थता, सुन्दरता का गर्व होने पर अशुचि-भावना का चिन्तन करें। यह शरीर अस्थि, मज्जा, रक्त, मल-मूत्र आदि से बना है। किसी भी समय सुरूपता कुरूपता में परिवर्तित हो ही जाती है। 3. सत्ता, सम्पत्ति, सुविधा, सत्कार, सम्मान, स्वजन आदि के आधार पर अहंकार पुष्ट होने पर विचार करना चाहिए कि ये सब मेरे पुण्य-कर्म के उदय से हैं, अगर मैंने अहंकार किया, तो यह पुण्य पाप में परिवर्तित हो जाएगा। 4. मान-विजय के लिए मार्दव-धर्म का पालन श्रेष्ठ है। मार्दव का अर्थ है- मृदुभाव। 5. धन-सम्पत्ति के अधिक मिलने पर उसका उपयोग दूसरों की सेवा-सहायता में करें। 6. ऊँच-नीच की भावना छोड़कर सभी को एक समान समझें। आचारांगसूत्र में कहा है -"यह जीवात्मा अनेक बार उच्चगोत्र में जन्म ले चुका है, तो अनेक बार नीच गोत्र में भी, इस प्रकार विभिन्न गोत्रों में जन्म लेने से न कोई हीन होता है और न कोई महान।91 7. चिन्तन करें- परमाणु, पुद्गलों का स्वभाव ही सड़न-गलन है। सभी पदार्थ नष्ट हो जाते हैं, अतः किसी भी वस्तु या व्यक्ति पर गर्व न करें। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है - "मान का प्रतिपक्षी विनय है। मान-विजय से विनय-गुणों की प्राप्ति होती है। 202 मान पर विजय प्राप्त करने से व्यक्ति तनावमुक्ति की प्रक्रिया में आगे बढ़ जाता है। मान से विनय गुण की प्राप्ति होती है और विनय 589 माणं मद्दवया जिणे – दशवैकालिकसूत्र -8/38 590 माणो विणयणासवो - दशवैकालिकसूत्र - 8/38 से असई उच्चागोह, असहं नीबागोए। नी होणे, नो अइस्तेि ............... || - आचारांगसूत्र -1/2/3 592 माणं विजएणं मद्दवं ..............! - उत्तराध्ययनसूत्र, 29/69 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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