SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति क्रोध सहनशीलता के अभाव में होता है, अतः अपनी सहनशीलता को बढ़ाने का प्रयास करें। 9. 10. आस्रव, संवर एवं निर्जरा - भावना की अनुप्रेक्षा करना 11. उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कोहं विजएणं भंते! जीवे किं जाणयई ? उत्तर कोहं विजएणं खंति जवयइ, अर्थात्, क्रोध पर विजय करने से क्या प्राप्त होता है ? उत्तर क्रोध पर विजय करने से क्षमाभाव प्रकट होता है586 और योगशास्त्र में कहा है- उत्तम आत्मा को क्रोधरूपी अग्नि को तत्काल शान्त करने के लिए एकमात्र क्षमा का ही आश्रय लेना चाहिए । क्षमा ही क्रोधाग्नि को शान्त कर सकती है। क्षमा संयमरूपी उद्यान को हरा-भरा बनाने के लिए क्यारी है। 587 12. . क्रोध आने पर मौन धारण करें। 13. क्रोध में एक गिलास ठंडा पानी पी लें। 14. पानी से अग्नि शांत हो जाती है, अतः कोई अगर हम पर क्रोध करे, तो उस पर क्रोध न करके उससे नरमी से बात करें, सामने वाले व्यक्ति का क्रोध शांत हो जाएगा। 585 586 587 588 — उपर्युक्त सूत्रों को अपनाने से क्रोध तो शांत होगा ही, क्रोध के साथ-साथ तनाव भी उत्पन्न नहीं होगा। क्रोध व्यक्ति को विवेकहीन व हिंसक बनाता है। क्रोध शारीरिक- स्वास्थ्य, मानसिक-शांति, सम्यक्त्वगुण, स्मरण-शक्ति, प्रीति और सहनशीलता का नाश करता है । उत्तराध्ययनसूत्र में तो यहाँ तक लिखा है कि अपने-आप पर भी क्रोध मत करो। 588 अतः, तनावमुक्ति के लिए क्रोध की मनोवृत्ति का त्याग आवश्यक है। बारह भावना उत्तराध्ययनसूत्र 'अध्याय 29, गाथा - 68 क्रोधवह्येस्तदह्याय शमनाय शुभात्सभिः । श्रयणीया क्षमैकैव संयामारामसारणिः । - उत्तराध्ययनसूत्र 29/40 Jain Education International — 585 योगशास्त्र - 4/11 293 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy