________________
292
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
जीवन तनावग्रस्त बना रहेगा। व्यक्ति में कषायरूपी वृत्तियाँ जब कम होती हैं, तो वह जीवन की तीनों अवस्थाओं- बाल्यावस्था, युवावस्था व वृद्धावस्था में आनन्द एवं शांति का अनुभव करता है। तनावमुक्ति के लिए या कषाय-विजय के लिए कुछ सूत्र निम्न हैं - क्रोध-विजय के उपाय - 1. दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि क्रोध को उपशम से नष्ट करो, अर्थात् समभाव से क्रोध को जीतो।। 2. क्रोध आने पर जिस व्यक्ति के प्रति या जिस स्थान पर क्रोध आ रहा है, वहाँ से दूर चले जाएं। 3. क्रोध आने पर स्वयं के क्रोध को देखने का प्रयास करें। अगर इतना ही ख्याल आ गया कि क्रोध आ रहा है, तो उसके दुष्परिणामों का ख्याल भी आ जाएगा, और क्रोध स्वतः ही चला जाएगा। . 4. क्रोध को शांत करने का एक उपाय यह भी प्रचलित है कि जब क्रोध आए तो एक से सौ तक गिनती गिनना प्रारम्भ करें, या किसी मंत्र का जाप करने लगे। 5. चिन्तन करने से भी क्रोध से बचा जा सकता है। चिन्तन करें'यह क्रोध मेरा स्वभाव नहीं है। यह मेरी आत्मा को विभावदशा में ले जा रहा है। 6. हमारे विचारों का हमारी श्वासोच्छवास से सीधा और गहरा सम्बन्ध है। जब क्रोध आता है, तो हमारी श्वास सामान्य स्थिति से तेज हो जाती है, इसलिए जब क्रोध आए, तो पहले अपने श्वास-प्रश्वास को संयमित करने का प्रयास करें। इससे क्रोध शांत होता है। 7. क्रोध क्यों आ रहा है ? कैसे आ रहा है ? कहाँ से प्रारम्भ हुआ है ? इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने से मन पर बाह्य-परिस्थिति का प्रभाव समाप्त हो जाता है और विचारों में परिवर्तन स्वाध्याय, चिन्तन, अनुप्रेक्षा आदि के माध्यम से होता है।584 8. क्रोध आने पर थोड़ा विलम्ब करें। प्रतिक्रिया की शीघ्रता मत करो।
उवसमेण हणे कोह। -दशवैकालिकसूत्र -8/39 कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन, साध्वी डॉ. हेमप्रज्ञाश्री, पृ. 137
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org