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________________ 286 . जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति वर्तमान में, प्राचीन समाज में प्रचलित रही कुछ रूढ़ियां युवा व्यक्तियों में तनाव उत्पन्न करती हैं, तो दूसरी ओर, नए समाज की नई रीतियाँ वृद्धों में तनाव का कारण बनती हैं। . .... वस्तुतः, समाज व्यक्तियों का समूह है। व्यक्तियों के इस समूह में प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता, अभिरुचि आदि भिन्न-भिन्न होती हैं, अतः सभी व्यक्तियों को समान तंत्र के द्वारा शासित करना सम्भव नहीं होता। सामाजिक दायित्वों को प्रदान करने और उनका निर्वाह करने में अनेकांत-दृष्टि की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सभी व्यक्तियों को समान रूप से समान कार्यों में नियोजित नहीं किया जा सकता। अनेकांत वह विचारधारा है, जो व्यक्ति की योग्यता और क्षमता को समझकर उसके दायित्वों का निर्धारण करती है। जिस प्रकार इंजिन का एक भी कलपुर्जा अपने उचित स्थान से अलग जगह लगा दिया जाए, तो इंजिन की समग्र कार्यप्रणाली ध्वस्त हो जाती है, उसी तरह समाज में भी यदि किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता से भिन्न दायित्व प्रदान कर दिया जाए, तो वह सम्पूर्ण सामाजिक-व्यवस्था को ध्वस्त कर सकता है। इस प्रकार, सामाजिक व्यवस्था के क्षेत्र में अनेकांतदृष्टि को अपनाना आवश्यक होता है। यदि हम उसकी उपेक्षा करते हैं, तो सामाजिक-व्यवस्था गड़बड़ा जाती है और उसके परिणामस्वरूप समाज का प्रत्येक सदस्य तनावग्रस्त हो जाता है। 6. पारिवारिक जीवन में अनेकांतवाद - जिस प्रकार समाज एक समूह है, उसी प्रकार परिवार भी व्यक्तियों का समूह है, जहाँ प्रेम, विश्वास, सहयोग एवं जन्म के आधार पर एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ रिश्ता जुड़ा होता है। ये प्रेम, सद्भावना आदि के गुण परिवार को तनावमुक्त रखकर शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखने में सहायक होते हैं, किन्तु परिवार के सदस्यों का दृष्टिभेद कुटुम्ब में संघर्ष व कलह उत्पन्न कर देता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के संस्कारों का भेद परिवार में तनाव का माहौल उत्पन्न कर देता है। सास यह अपेक्षा करती है कि बहू ऐसा जीवन जीए, जैसा उसने स्वयं बहू के रूप में जीया था, जबकि बहू अपने युग के अनुरूप और अपने मातृपक्ष के संस्कारों से प्रभावित जीवन जीना चाहती है। पिता पुत्र को अपने अनुरूप ढालना चाहता है, किन्तु पुत्र अपनी ही सोच के अनुरूप जीवन जीना चाहता है। बड़ा भाई छोटे को अपने अनुशासन में रखकर अपनी सोच से व्यवसाय को चलाना चाहता है, तो छोटा भाई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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