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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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3. राजनीतिक-क्षेत्र में अनेकांतवाद के सिद्धांत का उपयोग -
वर्तमान में विश्व में अशांति का एक मुख्य कारण राजनीति भी है। हरेक समूह अपनी सत्ता चाहता है। अपनी-अपनी राजनीतिकविचारधारा को उचित मानकर राजनीतिज्ञों में संघर्ष बढ़ रहा है। पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, फासीवाद आदि अनेक राजनीतिक विचारधाराएँ तथा राजतन्त्र, कुलतन्त्र आदि अनेकानेक शासन प्रणालियाँ वर्तमान में प्रचलित हैं और एक-दूसरे को समाप्त करने में प्रयत्नशील हैं। आवश्यकता है, अनेकांत के सिद्धांत को प्रयोग में लाने की। यह सिद्धांत एक पक्ष को यह विचार देगा कि विरोधी पक्ष भी सही हो सकता है, इसलिए उसने जो दोष बताए हैं, उनका हमें निराकरण करना चाहिए। जब तक सबल विरोधी न हो, हमें अपने दोषों का ज्ञान ही नहीं होता है। राजनीतिक क्षेत्र में अगर अनेकांत के सिद्धांत का प्रयोग किया जाए, तो सरकार चाहे बहुमत दल की हो, फिर भी अल्पमत वालों की बातों को सुनकर दोनों में सामंजस्य बैठाया जा सकता है। 4. प्रबन्धशास्त्र और अनेकांतवाद - .. प्रत्येक क्षेत्र में, चाहे वह किसी संस्था का हो या व्यवसाय का, समाज का हो या राज्य का, प्रबन्धशास्त्र का महत्त्व सबसे अधिक है। प्रबन्धन को कई रूपों में परिभाषित किया गया है। प्रबन्धन लोगों से कार्य करवाने की एक प्रक्रिया है, तो दूसरी ओर, प्रबन्धन को एक कला भी कहा गया है। किस व्यक्ति से किस प्रकार कार्य लिया जाए, ताकि उसकी सम्पूर्ण योग्यता का लाभ उठाया जा सके- यह प्रबन्धन है। प्रबन्धक को प्रत्येक कर्मचारी के भिन्न-भिन्न गुणों की परख कर उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप कार्य सौंपना चाहिए। प्रबन्धक को अनेकान्तिक-दृष्टि से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके प्रेरक-तत्त्वों को समझना होगा। एक व्यक्ति के लिए मृदु आत्मीय व्यवहार एक अच्छा प्रेरक हो सकता है, तो दूसरे के लिए कठोर अनुशासन की आवश्यकता हो सकती है। एक व्यक्ति के लिए आर्थिक-उपलब्धियाँ ही प्रेरक का कार्य करती है, तो दूसरे के लिए पद और प्रतिष्ठा ही प्रेरक-तत्त्व हो सकते हैं। प्रबन्धक व्यक्ति की इस बहुआयामिता को समझ लें, तो कोई भी संगठन या संस्था अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगी साथ ही, संस्था में शांतिपूर्ण वातावरण बना रह सकेगा और किसी भी उद्योग में हड़ताल जैसी तनावपूर्ण स्थिति निर्मित नहीं होगी। 5. समाजशास्त्र और अनेकांतवाद -
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