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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
अहिंसा का अर्थ
सरल शब्दों में कहें, तो हिंसा नहीं करना अहिंसा है। प्रायः यह समझा जाता है कि किसी की हत्या नहीं करना अहिंसा है, किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करना अहिंसा है, किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाना हिंसा है, किन्तु अहिंसा का अर्थ इससे कहीं अधिक व्यापक है। गांधीजी ने कहा है "अहिंसा वह स्थूल वस्तु नहीं है, जो आज हमारी दृष्टि के सामने है। किसी को न मारना - इतना तो अहिंसा का अर्थ है ही किन्तु इसके साथ ही किसी के प्रति दुर्भावना आदि भी हिंसा है। आतुरता हिंसा है, मिथ्या भाषण हिंसा है, द्वेष हिंसा है, जगत् के लिए जो आवश्यक वस्तु है, उस पर कब्जा करना भी हिंसा है। 545 उपर्युक्त कार्य नहीं करना अहिंसा है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि व्यक्ति में प्रेम, सद्भावना, सेवा, दया, करुणा, नैतिकता और आत्मीयता का गुण होना और उसी के अनुरूप व्यवहार करना अहिंसा है। प्रेम, सद्भावना, सेवा, दया, करुणा, नैतिकता आदि गुण व्यक्ति में होते हैं, अर्थात् ये व्यक्ति के मानवीय गुण हैं। व्यक्ति के मानवीय गुण ही उसका मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं। विश्वशांति बनाए रखने के लिए व्यक्ति को मानसिक-शांति की आवश्यकता होती है। आचार्य महाप्रज्ञजी ने भी यही सूत्र दिया है। सुधरे व्यक्ति से समाज, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा । उन्होंने विश्वशांति का मूल मंत्र बताते हुए लिखा है - "व्यक्ति-व्यक्ति में सामूहिक (समता) चेतना को जगाना ही विश्वशांति का मूलमंत्र है । -546
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व्यक्ति की चेतना को जगाने से तात्पर्य है- स्व-हिंसा से बचना। हिंसा दो प्रकार की होती है, पहली- 'स्व' की हिंसा और दूसरी - 'पर की हिंसा । सामान्यतः, लोग अहिंसा का तात्पर्य दूसरों की हिंसा नहीं करना, दूसरों को दुःख नहीं देना - यही मानते हैं, किन्तु जैन- दार्शनिकों का मानना है कि 'स्व' की हिंसा के बिना 'पर' की हिंसा नहीं होती है। व्यक्ति दूसरों की हिंसा तभी कर पाता है, जब वह अपने शुद्ध स्वरूप की हिंसा करता है। स्वभाव से विभाव में जाना, अर्थात् राग-द्वेष कषायादि से युक्त होना 'स्व' की हिंसा है। 'स्व' की हिंसा के बिना 'पर' की हिंसा सम्भव नहीं होती है। इसका तात्पर्य यही है कि दूसरों को दुःख देने की प्रवृत्ति राग-द्वेष के बिना नहीं होती और राग-द्वेष के कषायों से युक्त होना 'स्व' के शुद्ध स्वरूप की हिंसा है।
545 मंगल प्रभात, जीवन धर्म अहिंसा, भगवानदास केला, पृ. 11.
546 विश्वशांति और अहिंसा - आचार्य महाप्रज्ञ
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