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________________ 274 - जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 3. . "त्याग एव सर्वेषां मोक्ष साधनमुत्तमम", 543 जितने भी मोक्ष के साधन हैं, उनमें त्याग को सर्वोत्तम साधन माना है, इसलिए अपने संचय किए हुए धन या वस्तुओं में से दान देने की अर्थात् त्याग की भावना होनी चाहिए। 4. जितना उपयोग में आए, उतना ही अपने समीप रखें, इससे संचय किए गए धन के रक्षण से मुक्त हो जाएंगे। दूसरे शब्दों में कहें, तो धन के नष्ट होने या विनाश होने के भय से मुक्त हो जाएंगे। .. अपरिग्रह तनावमुक्ति का साधन है, अतः तनावमुक्ति के लिए परिग्रह-वृत्ति का त्याग आवश्यक है। अहिंसा और तनावमुक्ति - दशवैकालिकसूत्र के पहले अध्याय की पहली गाथा में वर्णित है- 'धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो', अर्थात अहिंसा, संयम और तप-रूप धर्म ही सर्वश्रेष्ठ मंगल है। जैनदर्शन में अहिंसा को सर्वोपरि सिद्धान्त माना गया है। व्रत चाहे श्रमण का हो, या श्रावक की, पहला स्थान अहिंसा को ही दिया गया है। अहिंसा ही जैनधर्म का सार है। अहिंसा का सिद्धांत सिर्फ व्यक्ति या समाज के लिए ही नहीं, अपितु पूरे विश्व को तनावमुक्त रखने के लिए है। जहाँ एक ओर हिंसा ने विश्व को अशांत बना रखा है, वहीं दूसरी ओर, अहिंसा को अपनाने से विश्व-शांति होती है। प्राचीनकाल से ही अहिंसा का सिद्धांत विश्व को शांति प्रदान करता रहा है। जब अंग्रेजों ने भारत देश पर कब्जा किया, तो महात्मा गाँधी ने अहिंसा व सत्य से देश को आजाद करवाया। __ आज के युग में हर समस्या का समाधान हिंसा में ही ढूंढा जाता है, किन्तु विश्व में जैसे-जैसे हिंसा बढ़ती जा रही है, तनावपूर्ण स्थिति और भी विकट होती जा रही है। आज तनावमुक्ति के लिए अहिंसा ही एक ऐसा उपाय है, जो बिना किसी तनाव या गहरी चोट के विश्व को शांति प्रदान कर सकता है। 543 अणु से पूर्ण की यात्रा, पृ. 151 544 दशवैकालिकसूत्र - 1/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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