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________________ 262 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति . मनःस्थिति संशय के हिंडोले में झूल रही हो, वह इस संसार में झूलता रहता है।" 515 जो साधक थोड़ा-सा भी संशय करेगा, वह इस साधना मार्ग में अपने लक्ष्य से च्युत हो जाएगा। मूलाचार में निःशंकता को निर्भयता कहा गया है। तनावमुक्ति के लिए निर्भयता आवश्यक है। भयपूर्ण जीवन तनावपूर्ण जीवन है। अतः, निःशंकता के गण के द्वारा ही तनाव-प्रबन्धन सम्भव है। निष्कांक्षता - 'पर' की आकांक्षा नहीं करना निष्कांक्षता है। आकांक्षा का अर्थ है- इच्छा एवं निष्कांक्षा का अर्थ है- इच्छा का अभाव। इच्छा तनाव उत्पन्न करती है। "स्वकीय आनन्दमय परमात्मस्वरूप में निष्ठावान रहना और किसी भी 'पर' वस्तु की आकांक्षा या इच्छा नहीं करना निष्कांक्षता है।517 व्यक्ति की यह मानसिकता होती है कि वह भौतिक-वैभव की उपलब्धि में सुख खोजता रहता है, किन्तु भौतिकवैभव की यह इच्छा आकांक्षा को जन्म देती है। इच्छा या आकांक्षा तनाव पैदा करने का साधन है। साधनात्मक-जीवन में भौतिक-वैभव, ऐहिक तथा पारलौकिक-सुख को लक्ष्य बनाना ही जैनदर्शन के अनुसार ‘कांक्षा है।18 भौतिक-सखों के पीछे भागने वाला साधक अपने लक्ष्य तनावमुक्ति . को प्राप्त नहीं कर पाता है, साथ ही प्रलोभन और चमत्कार में स्वयं को उलझा लेता है और जब परिणाम नही मिलता, तो तनाव की स्थिति में आ जाता है। .. अमूढ़दृष्टि - मूढ़ता या अज्ञान भी तनाव को जन्म देता है। मूढ़ता का अर्थ है- अज्ञानता। "हेय और उपादेय, योग्य और अयोग्य के मध्य निर्णायक-क्षमता का अभाव ही मूढ़ता है। 19 जब व्यक्ति को यह ज्ञान नहीं होगा कि क्या त्यागने योग्य है और क्या ग्रहण करने योग्य है, क्या सही है और क्या गलत है, तो ऐसी मूढ़ता की स्थिति में व्यक्ति तनावयुक्त रहता है। अमूढ़ व्यक्ति ही तनावमुक्ति के सही मार्ग को समझ सकता है, साथ ही स्वयं को और दूसरों को भी तनावमुक्त जीवन का मार्ग दिखा सकता है। 515 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन – पृ. 61 मूलाचार - 2/52-53 जैन. बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - पृ. 61 ७ रत्नकरण्डकश्रावकाचार - 12 519 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 61 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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